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________________ शतक ५. उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, .१८१ . २०. प्राo-देवा णं भंते ! कयराए भासाए भासंति, कयरा २०. प्र०—हे भगवन् ! देवो कइ भाषामा • बोले छे ? वा भासा भासिज्जमाणी.विसिस्सइ ? अथवा देवो जे भाषानो प्रयोग करे छे ते भाषाओमां विशिष्टरूप कइ भाषा छे ? २०. उ०--गोयमा! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति, २०. उ०—हे गौतम ! 'देवो अर्धमागधी भाषामां बोले छे सा वि य गं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सइ. अने त्यां बोलाती भाषाओमां पण ते ज भाषा-अर्धमागधी भाषा विशिष्टरूप छे. ६. देवप्रस्तावाद् इदमाहः- देवाणं' इत्यादि, ‘से किं खाइ णं भंते ! देवा इ वत्तव्वं सिय' त्ति. 'से' इति अथाऽर्थः. किं' इति प्रश्नार्थः. 'खाइ' त्ति पुनरर्थः. 'णं' वाक्यालंकारार्थः. देवा इति यद् वस्तु तद् वक्तव्यं स्यादिति. नो संजया इ वत्तव्वं सियं ' त्ति 'नो संयता' इत्येतद् वक्तव्यं स्यात् , असंयतशब्दपर्यायत्वेऽपि ' नोसंयत' शब्दस्याऽनिष्ठुरवचनत्वाद् मृतशब्दाऽपेक्षया परलोकीभूतशब्दवद् इति. देवाऽधिकारादेव इदमाहः-'देवा णं' इत्यादि. 'विसिस्सइ' त्ति विशिष्यते-विशिष्टा भवति इत्यर्थः. ' अद्धमागह ' त्ति भाषा किल षड्विधा भवति. यदाहः-- “प्राकृत-संस्कृत-मागध-पिशाचभाषा च शौरसेनी च, षष्ठोऽत्र भूरिभेदो देशविशेषादप्रभ्रंशः" तत्र मागधभाषालक्षणम् किञ्चित् , किञ्चित् प्राकृतभाषालक्षणं यस्यामस्ति सा अर्ध मागध्या इति व्युत्पत्त्याऽर्धमागधी इति. ६. आगळना प्रकरणमां देव संबंधे हकीकत जणावी छे अने आ प्रकरणमा पण ते ज संबंधे हकीकत जणावतां आ सूत्र कहे. छ के- देवाणं' इत्यादि.] [ 'से' किं खाई ण भंते ! देवा इ वतव्वं सिय ' ति] अर्थात् हे भगवन् ! देवो ए शुं कहेचाय ? [नो संजया इ वत्तबं सिय ' ति ] देवो ‘नोसंयत' कहेवाय. शं०-' असंयत' अने 'नोसंयत 'ए' बन्ने शब्दनो ओ तो सरखो जछे तेम् छतां देवो : नोसंयत' कहेवाय अने, ' असंयत ' केम न कहेवाय ? समा०-जेा मृत-मरेल' अने ' देवगत थएल' ए बन्ने शब्दोनो अर्थ तो सरखो ज छे तो पण ' मरेलो' कहेवा करतां देवगत -थएलो' कहेवू जेम सारुं-अनिष्ठुर-लागे छे ..तेम:' असंयत । कहेवा करतां नोसंयत' कहेवू मीठं लागे छ माटे ज 'असंयत' ने बदले 'नोसंयत ' शब्द वापर्यो छे. देवनो अधिकार चालु होवाथी ज आ एक बीजी वात कहे छे के, [' देवा णं' इत्यादि.] [ ' विसिस्सइ ' ति]-विशेषरूप होय छे --- प्रमाणमां विशिष्ट-वधारे होय छे. [ अद्धमागह ' ति ] अर्धमागधी. भाषाना मुख्य छ प्रकार छे. कडुं छे के-"प्राकृत, संस्कृत, मागधी, पैशाची-पिशाच भाषा, शौरसनी अने १. मूलच्छायाः-देवा भगवन् ! कतरया भाषया भाषन्ते, कतरा वा भाषा भाष्यमाणा विशिष्यते ? गौतम! देवाः अर्धमागध्या भाषया भाषन्ते, साऽपि च अर्धमागधी भाषा भाष्यमाणा विशिष्यतेः-अनु० १. ' से ' नो अर्थ हवे' छे. २. 'किम् ' नो अर्थ 'प्रश्न' छे. ३. 'खाद' नो अर्थ 'वळी' छे. ४. 'ण' वाक्यालंकार माटे छे.. ५. मागधीभाषानुं खरूप आ प्रमाणे छे: जे भाषा मगधमां चोलाती होय ते मागधी कहेवाय. पूर्व समये मगधदेशनी राजधानीचें नाम राजगृह (राजगिर ) हतुं. वर्तमानमा काशीथी गंगानी सामे कांठाना प्रिशने मगध कहेवामां आवे छे. वर्तमानमां मगधमां चालती भाषा, ग्राम्य हिंदीभाषा साये लगभग मळती जणाय के. भाचार्य श्रीहेमचंद्रे प्राकृतभाषा करता मागधीमा जे काइ विशेषता छे ते आ प्रमाणे जणावी छे: मागधीमां१. 'र'ने बदले 'ल'वपराय छे:-नर-निल, २. 'स' ने बदले 'श' वपराय छे:-हंस-हश. ३..स्व, स्त, स, स्म, स्क, स्ट, स्त अने स्फ जेवा संयुक्त अक्षरो पण मागधीमा वपराय छे. ४. “' ने बदले 'स्त' वपराय छः-अर्थ-अस्त. ५. ज','द्य' अने 'य' ने स्थाने 'य'वपरराय छे:-जनपद-यणवद. मद्य-मय्य. यथा-यधा. ६. न्य ण्य ' अने 'अ'ने स्थाने 'म' वपराय छे:-मन्यु-मञ्ज. पुण्य-पुज, प्रज्ञा-पव्या. अजलि-अलि . ७. छ' ने बदले 'श्व' वपराय छ:-गच्छ-गश्च. ८. 'क्ष' ने बदले क वपराय छे:-राक्षस-ल कश. ९. क्याय 'क्ष' ने बदले स्क' पण वपराय छ:-प्रेक्षते-पेस्कदि. ६. पैशाचीभाषानुं स्वरूप आ प्रमाणे छे: जभाषा पिशाचदेशोमा चालती होय ते पैशाची कहेवाय. पिशाचदेशोनां नाम आ छः पांड्य, केकय, वाल्हीक (अफगानीस्थान विगेरे.), सिंह, (सिंहल), नेपाल, कुंतल, सुदेष्ण, वोट, गांधार ( कंदहार), हैय अने कन्नोजन. पैशाचीमामागधीनो छट्टो फेरफार कायम रहे छे. 'ण' ने बदले 'न' वपराय छ:-गुण-गुन, 'द' ने बदले 'त' वपराय छे:-मदन-मतन. ल' ने बदले 'ळ'वपराय छ:-शील-शीला Jain Education international www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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