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श्रीरायचन्द्र जिनागमसंग्रहे
'शतक १. उद्देशक.
परिक्खेवेणं? गोयमा ! दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं. पन्नरस सयसहस्साइं, एक्कासीयं च सहस्साई, सयं च इगुणयालं किंचि विसेसूर्ण परिक्खेवेणं पण्णत्ते." इत्यादि. एतस्य चान्ते " कम्हा गं भंते ! लवणस मुद्दे जंबहीवे नो उबीलेइ!" इत्यादि-प्रश्ने " गोयमा जंबुद्दीवे दीवे भरहे-रवएस बासेसु अरहंता, चकवही" इत्यादरुत्तरगन्ध स्थाऽन्त “लांगटिइ इशादि द्रष्टव्यम् इति.
भगदत्सुधर्मस्वामिप्रणात श्रीभगवतीसूत्रं पञ्चमशत द्वितीय उद्देशक श्रीअभय देवसूरि विरचित विवरण मातम्.
४. पृथिवीकाय, वनस्पतिकाय विगेरेना शरीर संबंधी हकीकत आगळना प्रकरणमा जणावी छे अने हवे अप्काथ (पाणी) रूप लवणसलवणसमुद अने
मुद्रनु स्वरूप जणावतां कहे छे के, [' लवणे णं' इत्यादि..] 'एवं णेयव्वं ' ति ] जीवोभिगम नामना सूत्रमा आवेलुं लवण समुद्र संबंधी ___ जीवाभिगम.
सूत्र, कहेला पाठने अनुसरतुं जाणवू. ते क्या सुधी जाणवू ? तो कहे छे के, [ 'जाव लोग-' इत्यादि.] ते आ प्रमाणे:--' तेनो घरावो केटलो कह्यो छे ? हे गौतम! बे लाख योजन तो तेनो चक्रवाल विष्कम छे अने तेनो घेरावो पन्नर लाख, एकाशी हजार अने ओगगचालीस सो (?) योजन करतां थोडो घणो वधारे कयो छे' इत्यादि. ए सूत्रनी छेवटे जणाव्यु छ के, 'हे भगवन् ! लवण समुद्र, जंबू द्वीपने नथी डुबाडतो तेनु
शुं कारण ?' इत्यादि प्रश्नना जबाबमा जणावे छे के-'हे गौतम ! जंबूद्वीप नामना द्वीपमा भरत अने ऐरवत क्षेत्रमा अरहतो अने चक्रवर्तिओ महापुरुषो. विगेरे महापुरुषो थाय छे अने तेओना प्रभावथी लवण समुद्र जंबूद्वीपने डुबाडी शकतो नथी' तथा त्यार पछी जणाव्यु छ के, 'एवा प्रकारनो
लोकस्वभाव छे एथी पण लवण समुद्र जंबूद्वीपने डुबाडी शकतो नथी' इत्यादि समजवू.
बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सगुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योः-दयात् श्रीवीरदेवः सकलशिवसुख मारहा चाप्तमुख्यः ।।
अलीणा, भङ्गा, विणीता एकोह-माण-माया-लाभाभदया, पगतिविण
सावियाओ, मणुया एगधचा-(म्मा?), पगतिभया; पगतिविणीया, श्रमणीओ, श्रावको, श्राविकाओ अने एक धर्मवाळा (१) मनुष्यो रहे छ, पगतिउवसंता, पगतिपयणुकोह-माण-माया-लोभा, मिउ-मद्दवसंपन्ना, जेओ खभावे भद्र, विनीत, अने उपशांत होय छे, स्वभावथी ज जेओना अल्लीणा, भद्दगा, विणीता-तेसि गं पणिहाते लवणे समुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो क्रोधादि कषायो मंद होय छे, जेओ सरळ अने कोमळ होय छे तथा उवी लेति, नो उप्पीछेति, नो चेव णं एगोदगं करेति" इत्यादि. जेओ जितेंद्रिय, भद्र, अने नम्र होय हे-तेवा मनुष्योना प्रभावधी लवण
समुद्र, जंबूद्वीपने डुबाडतो नथी, झबोळतो नथीं अने जलमय करी शकतो नथी" इत्यादि:-अनु०
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