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शतक ४.-उद्देशक १-२-३-४-५-६-७-८. संग्रहगाथा.-ईशानना लोकपालो केटला ?-सोम, यम, वरुण अने वैश्रवण.-लोकपालोनी विमानो केटलां ?-सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु अने सुवल्गु.-सुमन ... का आयुं :-शानावतंसकनी पूर्व.-वारे विमानना चार उद्देश.-स्थितिभेद.-राजधानी.
आ चोथा शतकमां दश उद्देशक छे. तेमां चार उद्देशकमा - चत्तारि विमाणेहिं चत्वारि य होति रायहाणीहिं,
विमान संबंधी हकीकत छे, वीजा चार उद्देशकमां राजधानी संबंधी नेरईए लेस्साहि अ दस उद्देसा पउत्थसये.. हकीकत छे अने एक उद्देशक नैरयिको संबंधे छे तथा एक
उद्देशक लेझ्या संबंधे छे--ए रीते आ शतकमा दश उद्देशक छे.
गोहा:
ईशान इंद्रनो परिवार. १. प्र०—रायगिहे नयरे जाव-एवं वयासी:-ईसाणस्स णं १. प्र०—राजगृह नगरमां यावत्--आ प्रमाणे बोल्या के:भंते । देविंदस्स, देवरणों कइ लोगपाला पण्णत्ता? हे भगवन् ! देवेंद्र देवराज ईशानने केटला लोक
१. मूलच्छाया:-गाथा:-चत्वारो विमानैश्चत्वारश्च भवन्ति राजधानीभिः, नैरयिको लेश्याभिश्च दश उद्देशःश्चतुर्थशते. राजगृहे नगरे यावत्एवम् अवादीत:-ईशानस्य भगवन् ! देवेन्द्रस्य, देवराजस्य कति लोकपालाः प्रज्ञप्ता:-अनु०.
१. आ सूत्रमां-अत्यार सुधीमा भने हवे पछीनां शतकोमा-आपणे अनेक स्थळे 'इंद्र' शब्दनो प्रयोग थएलो जोहए छीए. प्रायः सघळे ठेकाणे एइंद्रने ' देविंद'-देवोनो इंद्र अने ' देवराय ' देवोनो राजा-ए बे विशेषणो लागेलो जोवामां आवे छे. आथी वधु, ज्यारे आपणे ज्ञातनंदनयोगीश्वरनुं जीवन-चरित्र सांभळीए छीए त्यारे तेमां-जन्म, निष्क्रमण (दीक्षा) अने धर्मचक्रप्रवर्तनादिना प्रसंगोमा तथा तेमना उद्मस्थ-विहारना प्रसंगोमा अनेक स्थळे आ 'इंद्र' अने तेना देवादि परिवारने पण जोइए छीए-आपणा पाराणिक पद्धतिए ग्रंथ-रचनाराओ ए इंदने-'जैन'-जणावे छे अने ते उपरांत एने चतुर्विध संघनो रक्षक पण ठरावे छे-इंद्र संबंधे एनी लीला अने समृद्धिना उडेखोने बाद करता जैन ग्रंथोए विषे उपर जणाव्या करती विशेष प्रकाश नाखी शकता नथी-तेम वौद्ध ग्रंथो पण ए विषे (इंद्र विषे) लगभग एवं ज भलतुं वर्णन आपे छे. मात्र विशेषतामां तेने 'बौद्ध' होवान सूचचे छे. ए विषे एक टिप्पण आगळ (जुओ-पा-३९ १. टिप्पण) जणावी गयो छु अने बौद्ध ग्रंथमा आवतुं इंद्रने लगतुं केटलुक उपयोगी लखाण अहीं पण उमेरुं छुः
"इति ह भिक्खवे| पटिसंचिक्खतो अप्पोस्सुकताय चितं नमति, (भगवान बुद्ध कहे छः) नो धम्मदेसनाय. अथ खो ब्रम्हुनो सहरतिस्स मम चेतसा चेतोपरिवितकं "हे भिक्षुओ। ए प्रमाणे सारी रीते समज्या पछी (मारे) चित्त अन्याय एतदहोसि-नस्सति वत भो लोकोxxx अथ खो भिक्सवे! आत्मानी उत्सुकता तरफ नमे छे-बळे छ पण धर्मना उपदेश माटे नहि. प्रम्हा सहपति एकसं उत्तरासंगं करित्वा येनाऽहं तेनऽअलि पणामेवा में हवे सहपति (जैन शब्द 'सोहम्मपति')ब्रह्माने मारो उपलो विचार एतदवोच-'देसेतु भंते ! भगवा धम्म, संति सत्ता अप्प-रजक्ख-जाति- जणाया पछी एम थयुं के ( जो भगवान धर्मनो उपदेश नहि करे ) तो का अस्सवनता धम्मस्स परिहायंति-भविस्सति धम्मस्स अज्ञातारो ति." लोकोनो नाश थशे. हवे हे भिक्षुओ। ए सहपति ब्रह्मा एक खभा तरफ
खेस करीने जे तरफ हुं छु ते तरफ आवी हाथ जोडी-प्रणाम-करी आ प्रमाणे बोल्योः हे भगवन् ! आप-भगवान-धर्मनो उपदेश करो-प्रजा धर्म रहित अने अज्ञान थइ जशे"
-(म.पृ० ११९. रा.) .आ'उल्लेखमा सहपति ब्रह्मे भगवान बुद्धने धमापदेश देवानी विनंती करी छे-जैनोमा पण आज जातनी विनतीनी नोंध मळी आवे छे-बानो क्षेस खिंबानो अन प्रणाम करवानो उल्लेख तो जैनोना ए आतना उडेख साथे बराबर मळी रहे छे,
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