________________
४६
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १.-उद्देशक १. भवेत् , तदा तस्मिन्नेव चलने सर्वेषामुदयावलिकाचलनसमयानां क्षयः स्यात् ; यदि हि तत्समयचलननिरपेक्षाणि अन्यसमयचलनानि भवन्ति,
तदा उत्तरचलनानुक्रमणं युज्येत, नान्यथा; तदेवं चलदपि तत् कर्म चलितं भवतीति. वर्तमानने भूतना. २. तथाहि प्रथम तन्तुनो प्रवेश थये छते उत्पत्तिक्रियाकालमा ज पट उत्पन्न थयो छे एम स्वीकार जोइए. जो प्रथम तन्तुना प्रवेश समये पण पट ध्ययहारनी सिदि. उत्पन्न थतो नथी एम मानवामां आवे तो, प्रथम समयनी पटोत्पादिका क्रिया निष्फळ जाय छे. कारण के उत्पन्न थता पदार्थाने उत्पन्न करवाने माटे ग
क्रियाओ होय छे अने क्रिया विद्यमान होवा छतां कार्य न थाय तोते क्रिया नकामी गणाय छे. तथा (पूर्वपक्षना मतानुसारे) जेमै पट प्रथम क्रियासमये उत्पन्न थतो नथी तेम, उत्तर समयोने विषे पण उत्पन्न न ज थवो जोइए. कारण के उत्तर समयनी क्रियाओमां शुं विशेषता छे के, जेथी प्रथम समयनी क्रियाथी पट उत्पन्न न थाय, अने उत्तर समयनी क्रियाओथी उत्पन्न थाय ?. एथी ज (एटले के प्रथम समये प्रथम तन्तुनो प्रवेश थये छते पण पटनुं उत्पन्न पणुं नहीं मानीए तो) हम्मेशने माटे (कोइ पण काले) पटनी उत्पत्तिनो संभव नथी, अर्थात् तेनी अनुत्पत्तिनो प्रसंग आवशे. अने अन्त्य तन्तुना प्रवेशे संपूर्ण पटने देखवाथी उत्पत्ति तो देखीए छीए. तेथी मानवू जोइए के, प्रथम तन्तुना प्रवेश समये ज पटनो काइक अंश उत्पन्न थाय छे. प्रथम तंतुना प्रवेश समये ज जेटलो पटांश उत्पन्न थयो, तेने (उत्पन्न थयेला अंशने) उत्तर क्रिया उत्पन्न करती होय, तो, ते एक ज पटांशने उपजाववामा पट उत्पन्न करनार समग्र क्रियाओनो अने सकल कालनो क्षय थाय. वळी जो उत्पन्न थएला पटना प्रथमांशना उत्पादननी अपेक्षारहित पाश्चात्य क्रियाओ होय तो ज पटना पाछला अंशोनो अनुक्रम थाय, अन्यथा अनुक्रम थाय नहीं, अर्थात् प्रारंभना एक ज अंशनी उत्पत्तिमा उपर कह्या प्रमाणे संपूर्ण क्रियानो अने कालनो क्षय थवाथी, पाछळना अंशोनी उत्पत्ति थाय नहीं. आ प्रमाणे जेम उत्पन्न थतो पट उत्पन्न थयो कहेवाय छे तेम कर्मोनी असंख्यात समयना परिमाणवाळी उदयावलिका होवाथी, आदि समयथी प्रारंभी 'चालतुं' जे कर्म ते 'चाल्यु' ए प्रमाणे कहेवाय छे. कारण के चालवाने अभिमुख थएवं कर्म उदयावलिकाना आदि समयमां ज चाल्युं न होय तो, ते कर्मनो आदिचलनसमय, कर्मचलनरहित होवाथी व्यर्थ थाय छे. अने जेम ते कर्म प्रथम समयमा चाल्युं नथी तेम, बीजे समये, त्रीने समये, वगेरे असंख्यात समयोमां पण ते कर्म चालवु न जोइए, कारण के चलनरहित पहेलां समय करतां द्वितीयादिसमयोमां शुं विशेषता छे के, पहेला समयमां ते कर्म न चाल्यु अने उत्तर समयोमा चाल्युं ?. (अर्थात् प्रथम समय करतां उत्तर समयोमा कांइ पण विशेषता न होवाथी, जेम उत्तर समयोमा चलन क्रिया मनाय छे, तेम प्रथम समयमां पण जरूर चलन क्रिया मानवी जोइए.) आथी, सर्व समयो समान होवा छतां पण प्रथम समयमा कर्मन चलन न मानवू, अने द्वितीयादि समयोमा चलननुं मानवं, ए वात युक्तिरहित होवाथी अने समयोनी समानता होवाथी, जेम प्रथम समयमां चलन नथी थतुं, तेम द्वितीयादि समयोमां पण चलन थर्बु असंभवित छे. अने तेथी सर्वदा (सर्व समये) कर्मना अचलननो प्रसंग आवशे, अर्थात् कदि पण कर्म चालशेज नहीं (उदयमा आवशे ज नहीं). वळी कर्मोनी स्थिति परिमित होवाथी, कर्माऽभावना अभ्युपगमने लइने अन्त्य समये कर्मोनुं चलन थतुं अनुभवाय छे माटे, प्रथमना ज चलन समयमा तेम ज, प्रथमोत्तर सर्व चलन समयोमा कर्मना अंशो काइ चलित (चालेला) छे एम मानवू ज जोइए. अने जे जे कर्म उदयावलिकाना आदि समयमा चाल्युं छे, ते ते उत्तर समयमां चालतुं नथी. कारण के जो उत्तर समयमां पण ते प्रथम समयमां थएवं चलन थाय तो ते आदिचलनमा ज उदयावलिकाना सकल चलन समयनो क्षय थाय, अर्थात् आदि चलनमां सर्वकाळ चाल्यो जाय अने कदी पण कर्मनो अंत आवी ज न शके. वळी आ समये अमुक कोश चलित थयो, आ समये अमुक कौश चलित थयो, ए प्रमाणे उत्तर चलनना कर्मनो चलनक्रम त्यारे ज थइ शके ज्यारे प्रथम समयना कर्माशना चलननी अपेक्षा वगरनां (स्वतन्त्र) अन्य समयना चलनो होय. अन्यथा एटले प्रथम समयना चलनमाटे ज जो सर्व उत्तर समयोने लगाडीए तो ते पूर्वोक्त क्रम पण बनी शकतो नथी. तात्पर्य ए ज के कोइ पण काले कर्मर्नु अन्त्य चलन थतुं होवाथी ते अन्त्य चलननी पहेलांना सर्व समयोम चालता कर्मने चलित मानवू ज जोइए. तो ए प्रमाणे पूर्वोक्त तर्कोथी चालतुं कर्म पण चाल्युं कही शकाय छे एम स्थपाइ चूक्युं छे.
१. कदाच आपणे एम खीकारीए के, प्रथम क्रियासमये पट उत्पन्न थतो नथी पण, प्रथम पछीना समयोमा उत्पन्न थाय छे, तो ते मंतव्य पण साचुं नथी, कारण के जेम प्रथम क्रियासमयमा पट उत्पन्न थतो नथी तेम प्रथम पछीना सर्व क्रियासमयोमां पण ते उत्पन्न थइ शकशे नहीं, कारण के प्रथम क्रियासमयमा अने उत्तर क्रियासमयमां कांइ पण विशेषता नथी:-अनु.
२. वळी उत्पन्न थवाने शरुथएल पटने आपणे कोइ पण काले-अन्यतन्तु प्रवेश थये छते समाप्ति काले-उत्पन्न थएलो जोइए छीए माटे, आपणे एम खीकार जोइए के, पट, प्रथम समयथी मांडीने दरेक समये उत्पन्न थया ज करे छे, अर्थात् उत्पद्यमान पट पण अंशे अंशे उत्पन्न थया ज करे छे, तथा पटनो जेटलो जे अंश प्रथम तन्तुप्रवेश समये प्रथम क्रियाकाले उत्पन्न थयो छे, ते अंशथी भिन्न भिन्न पटना अंशो द्वितीय क्रियाकाले तैयार थाय छे, अर्थात् प्रथम समये उत्पन्न पटना अंशने द्वितीय समयनी क्रियाओ फरीथी उत्पन्न करती नथी. कदाच कोइ एम स्वीकारे के, प्रथम समये उत्पन्न थएल पटना अंशनी फरी उत्पत्ति करवा उत्तर समय-द्वितीयसमयादि-नी क्रियाओ लागे छे तो, ते मंतव्य पण सत्येतर (जूलु) छे. जो एम मानवामां आवे तो पण कोइ काले पटनी उत्पत्ति थइ शके ज नहीं. कारण के उत्तर समयनी सर्व क्रियाओ प्रथम समये उत्पन्न थएल पटना अंशने उत्पन्न कर्या ज करशे, जेथी कदापि तेनो (पटनो) अंत आवशे नहीं अने ते प्रथम समये उत्पन्न थयेल पटना अंशनी उत्पत्ति करवामां ज उत्तरनी सर्व कियाओनो अने समयनो क्षय थशे, वळी पटनो प्रथम अंश उत्पन्न थयो, द्वितीय अंश उत्पन्न थयो, इत्यादि क्रम त्यारे ज संभवे के ज्यारे प्रथम समयना पटांशना उत्पादननी अपेक्षावगरनी-खतन्त्र-बीजि उत्तर समयनी क्रियाओ होय. अन्यथा एटले एक ज प्रथम समये उत्पन्न थएल पटांशने ज उत्पन्न करवामां ज जो सर्व क्रियाओने लगाडीए तो, ते पूर्वोक्त क्रम पण बनी शके नहीं. तात्पर्य एज छे के, ज्यारे अन्त्यसमये आपणे पटने उत्पन्न थएलो जोइए छीए त्यारे, ते पटने अन्त्यरामयनी पहेला आदिना दरेक समयमा अंशे अंशे उत्पन्न थतो मानवो ज़ जोइए, अर्थात् उत्पद्यमान पट उत्पन्न थाय छे ए मन्तव्य निर्विवाद छे. हवे जेम उत्पद्यमान पट उत्पन्न थतो सिद्ध कर्यो तेम ज, 'चालतुं कर्म चाल्यु ए व्यवहारनी पण निर्दोषता सिद्ध करवी:-अनु०
३. कर्मोनी स्थिति मर्यादित होवाथी एक एवो पण चलननो अन्त्यसमय आवे छे जेमा, योग्य भव्यात्मा कर्मरहित थइ जाय छे. जो, कदि कर्मचलन थतुं ज न होय तो जीवोनी मुक्ति थइ शके ज नहीं माटे, चलनना अन्त्यसमयनी पूर्वना दरेक, उदयावलिकाना प्रथमादि समयोमां पण कर्म अंशे अंशे चलित थया करे छे, एम मानवू जोइए:-अनु.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org