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४४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहें
शतक १.-उद्दशक १. प्राकृतशैली होवाथी, भव एटले संसारना नाशकारी होवाथी भवान्त, वा भीतिना नाशकारक होवाथी मयान्त, तेना संबोधनमा हे भवान्त ! अथवा हे भयान्त !. अथवा भौन्–ज्ञानादिवडे दीप्यमान, वा भ्राजमान दीप्यमान हे गुरो! अर्थात् हे गुरो! आपे कहेलं 'चालतुं ते चाल्यु' इत्यादि ए प्रमाणे
छे?. आदिथी आरंभीने 'भंते!' सुधीनो आ ग्रन्थ, भगवान् सुधर्मास्वामिए पांचमा अंगना प्रथम शतकना प्रथम उद्देशकना संबंधमाटे करो. हवे आ 'चलमान चलित' संबंधे आवेला पांचमा अंगना, प्रथम शतकना, पहेला उद्देशकर्नु आ [ 'चलमाणे चलिए'इत्यादि ] प्रथम सूत्र छे. शंकाः-पांचमां ए सूत्र प्रथम केम? अंगना प्रथम शतकना पहेला उद्देशकना अर्थानुकथनने करता भगवान् सुधर्माखामिए बीजा अर्थवाळां सूत्रो न मूकतां शरुआतमां ज 'चालतुं ते चाल्यु
ए अर्थने कथन करतुं सूत्र केम राख्युं?. समाधानः-चार पुरुषार्थमां मोक्षनामनो पुरुषार्थ सर्वातिशायी होवाथी मुख्य छे, अने साध्य एवा मोक्षना सम्यगदर्शनादि अव्यभिचारी साधनो छे. आ प्रमाणे उभयना निश्चयनुं शिक्षण आपनार शास्त्रने सजनो इच्छे छे. उभय नियम आ प्रमाणे छः-साध्यस्वरूप मोक्षनां ज सम्यग्दर्शनादि साधनो छे परंतु अन्यना नथी, तथा मोक्ष पण सम्यग्दर्शनादि साधनो वडे ज साध्य छे, किंतु अन्यवडे नथी. उक्त रीति वडे उभय (बन्ने) ना निश्चयने करावनार शास्त्रने सज्जन पुरुषो इच्छे छे. ते मोक्ष विपक्ष (मोक्षविरुद्ध पक्ष) ना क्षयथी थाय
छे, ते विपक्ष बंध छे–कर्मोनो आत्मानी साथे संबंध ते ज मुख्य बंध कहेवाय छे. ते कर्मोना प्रक्षय निमित्ते (मोक्षप्राप्ति अर्थे) आ ['चलमाणे'इत्यादि] ए सूत्र कर्मक्षयना अनुक्रम कह्यो छे, अर्थात् आ प्रारंभ सूत्र कर्मक्षय सूचक छे, माटे प्रथम कयुं छे. ['चलमाणे त्ति] तेमां (वक्ष्यमाण प्रश्नमां) चलत्-स्थितिना क्षयथी अनुक्रमनु सूचक छे. उदयमा आवतुं, विपाक-फलदान-रूपपरिणाममाटे अभिमुख थतुं, जे कर्म ('कर्म' ए अर्थ प्रकरणगम्य छे) ते कर्म 'चलितम्' एटले 'उदयमां आव्यु
ए प्रमाणे व्यपदेशाय छे. कर्मोनो जे चलनकाळ ते ज उदयावलिका छे, अने ते चलनकाळ असंख्य समयवाळो होवाथी आदि, मध्य अने अंतथी
समय.
। होय त्यारे तेना साधन तरीकेशममा वपराता कालतुं माप समयणी ने थइ शके
पूर्वागर्नु एक पाय छे. दश शतवर्षतुं वर्षसहल आयनथाय छे. वे अयन एको एक पक्ष' थाय छे. मानो एक 'लव' थाय छे. सत्य
शब्द बने छे. 'भ्राजन्त' एटले ज्ञान तथा तपादि गुणोनी दीप्तिथी जे युक्त होय ते. अथवा भ्रमण अर्थवाळा 'भ्रम' धातु परथी 'भ्रान्त' शब्द बने छे. भ्रान्त' एटले मिथ्यात्वादि बंधनोथी जे रहित होय ते. अथवा 'भग' शब्दने 'मतु' प्रत्यय लागवाधी 'भगवत्' बने छे. 'भगवत्' एटले ऐश्वर्यादि छ प्रकारनी ऋद्धिवडे जे युक्त होय ते. अथवा 'भवान्त' शब्द परथी 'भन्ते' शब्द बने छे. भवांत-भव-नारकादिभव, तेनो अन्त-नाश, तेने करनार अथवा 'भयान्त' शब्द परथी 'भन्ते' शब्द बने छे. भयांत-भय-संसारजन्य त्रास, तेनो अन्त-नाश, तेने करनार.-विशेषावश्यक, गाथा ३४३९, ३४४६, ३४४७, ३४४८, ३४४९:-अनु.
२. कल्याण अथवा सुख थq, ए अर्थवाळा 'भदि' धातु परथी 'भदन्त' शब्द बने छे:-श्रीअभयदेव. ३. 'भा दीपqए धातुनुं 'शतृ' प्रत्ययमा रूप समजवु:-श्रीअभयदेव. ४. 'भ्राज दीपवु'ए धातुनुं 'आनश्' प्रत्ययमा रूप समजवुः-श्रीअभयदेव. ... ५. कोइ पण पदार्थनी स्थिति (उमर) सूचववी होय त्यारे तेना साधन तरीके मात्र काल ज उपयोगमा आवे छे अने ते माटे. व्यवहारदक्ष पुरुषोए ते स्थितिना सूचक कालना घणा विभाग कर्या छे. जैनदर्शनमा वपराता कालनु माप समयथी शरु थाय छे अर्थात् जेम परमाणु-परम अणु-नानामां नानो पणाय तेम कालनो नानामां नानो भाग, जेनाथी बीजो भाग नानो न थइ शके एवो भाग ते जैनपरिभाषामा 'समय' शब्दथी प्रसिद्ध छे. जैनशास्त्रमा कालनु कोष्टक आ प्रमाणे छ:-'समय' ए तद्दन सूक्ष्मकाल छे. असंख्य समयोनी एक 'आवलिका' थाय छे. संख्येय आवलिकानो एक 'आन-उच्छ्वास' थाय छे. संख्येय उच्छ्वासोनो एक "निःश्वास' थाय छे. आन अने निःश्वास ए बनेनो भेगो मळेलो काळ एक 'प्राण' थाय छे. सात प्राणनो एक 'स्तोक' थाय छे. सात स्तोकनो एक 'लव' थाय छे. सत्योतेर लवनो एक 'मुहूर्त' थाय छे. त्रीश मुहूर्तनो एक 'अहोरात्र' थाय छे. पंदर अहोरात्रनो एक 'पक्ष' थाय छे. बे पक्षनो एक 'मास-महिनो' थाय छे. बे मासनो एक 'ऋतु' थाय छे. त्रण ऋतुओर्नु एक 'अयन' थाय छे. बे अयन- एक 'संवत्सर' थाय छे. पांच संवत्सरनुं एक 'युग' थाय छे. वीश युगर्नु ‘शतवर्ष थाय छे. दश शतवर्षतुं 'वर्षसहस्र' थाय छे. सो वर्षसहस्रनुं 'वर्षलक्ष' थाय छे. चोराशी वर्षलक्षनुं एक 'पूर्वांग' थाय छे. चोराशी लाख पूर्वागर्नु एक 'पूर्व' थाय छे अने एक पूर्वमा ७,०,५,६०००००००००० आटलां वर्ष थाय छे अर्थात् सात शंकु, शून्य महापद्म, पांच निखर्व अने छ खर्व जेटलां ते वर्ष छे. चोराशी लाख पूर्व- एक 'त्रुटितांग' छे. चोराशी लाख त्रुटितांगनुं एक 'त्रुटित' थाय छे. चोराशी लाख त्रुटितर्नु एक 'अटटांग' थाय छे. चोराशी लाख अटटांगर्नु एक 'अटट' थाय छे. चोराशी लाख अटटर्नु एक 'अवांग' थाय छे. चोराशी लाख अवांगर्नु एक 'अवव' थाय छे. चोराशी लाख अववर्नु एक 'हूहूकांग' थाय छे. चोराशी लाख हूहूकांगजें एक 'हहुक' थाय छे. चोराशी लाख हूहूकनुं एक 'उत्पलांग' थाय छे. चोराशी लाख उत्पलांगर्नु एक 'उत्पल' थाय छे. चोराशी लाख उत्पलनु एक 'पद्मांग' थाय छे. चोराशी लाख पद्मांगनुं एक 'पद्म' थाय छे. चोराशी लाख पद्मनुं एक 'नलिनांग' थाय छे. चोराशी लाख नलिनांगर्नु एक 'नलिन' थाय छे. चोराशी लाख नलिननुं एक 'अर्थनिपूरांग' थाय छे. चोराशी लाख अर्थनिपूरांग एक 'अर्थनिपूर' थाय छे. चोराशी लाख अर्थनिपूरनुं एक 'अयुतांग' थाय छे. चोराशी लाख अयुतांगर्नु एक 'अयुत' थाय छे. चोराशी लाख अयुतर्नु एक 'नयुतांग' थाय छे. चोराशी लाख नयुतांगर्नु एक 'नयुत' थाय छे. चोराशी लाख नयतनुं एक 'प्रयुताग' थाय छे. चोराशी लाख प्रयुतांगनुं एक 'प्रयुत' थाय छे. चोराशी लाख प्रयुतनुं एक 'चूलिकांग' थाय छे. चोराशी लाख चूलिकांगनी एक 'चूलिका' थाय छे. चोराशी लाख चूलिकानुं एक 'शीर्षप्रहेलिकांग' थाय छे अने चोराशी लाख शीर्षप्रहेलिकांगनी एक 'शीर्षप्रहेलिका' थाय छे. एक शीर्षप्रहेलिकामां '७५८२६३२५३०४३०१०२४११५७९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८४८०८०१८३२९६००००००००००००००००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००' आटला आंकडा थाय छे आ 'शीर्षप्रहेलिका' सुधीनो काल गणितथी जाणी शकाय छे अने संख्येय छे तथा ते पछीनो पण संख्येय काल छे परंतु ते गणितथी जाणी शकातो नधी माटे ते उपमावडे ज्ञेय छे. जेम के, पल्योपम, सागरोपम अने पुद्गलपरावर्तादि रूप काळ छे ते मात्र उपमाथी ज जाणी शकाय छे. तेनुं विवेचन ते ते शब्दो उपर टिप्पणतरीके आगळ सूचवाशे. 'समय' जे सूक्ष्मतम काळ छे तेनुं खरूप श्रीअनुयोगद्वारसूत्रमा आ प्रमाणे छे:
“से किं तं समये!, समयस्स णं परूवणं करिस्सामि, से जहा नामए हवे 'समय' ए शुं छे? ते प्रश्नना उपशमन माटे समयना खरूपनी तुन्नागदारए सिया तरुणे, बलवं, जुगवं, जुवाणे, अप्पायंके, थिरग्गहत्थे, विवेचना करीश. जेम कोइ एक दरजीनो छोकरो, जे तरुण, दढपाणिपायपासपिटुंतरोरुपरिणए, तलजमलजुगलपरिघनिभवाहू, चम्मिट्ठ- बलवान् , युगवान् , युवान् , अल्पातंक-रोगरहित, स्थिर हस्ताप्रवाळो, गदुहणमुट्ठिअसमायनिचिअगायकाए, लंघण-पवण-जवण-वायामसम- जेना हाथ, पग, पडखा, वांसो, आंतरडा अने उरु दृढपणे परिणत छे. स्थे, उरस्सवलसमभागए, छेए, दक्खे, पढे, कुसले, मेहावी, निउणे, तालना युग्मनी पेठे, धुसरानी पेठे अने भोगळनी पेठे जेना याहु मजबूत निउणसिप्पोवगए एग महई पडसाडि वा, पट्टसाडि वा गहाय सयराहं छे. जेनां गात्रो अने काय चर्मेष्टक, द्रुघण अने मुष्टिकथी समाहत अने
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