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________________ 352 वि.नगर, श्रिीरायचउद्र जिनागमसंग्रहे सुपइडिय-होति. प्रा. सं० सो* सं० सुप्रतिष्ठितसुपरिनिष्ठित सुरभिगन्ध शुभ सुपइट्ठिय* सुपरिनिद्विम मुभिगंध सुभ . 231 प्रा० तद्-सः सोइंदिय श्रोत्रेन्द्रिय सोइंदियत्ता* श्रोत्रेन्द्रियता सोचा* श्रुत्वा सोणि शोणित सोभेड शोभयति सोयप्पहाण* शौचप्रधान सोयविनाणावरण* . श्रोत्रविज्ञानावरण कान, कानपणुं. सांभळीने. लोही. (ते) शोभावे छे. प्रधानपणे चोक्खाइवाळु. 286 कानना ज्ञानने अटकाव सुयणाणी* 156 नार. 184 241 सुयनाण' सुयमुह सुरभवण* सुरवर* सुरूवत्ता सुवइ . सुवण्ण* . सुवण्णत्ता : सुवनकुमार सुवमाणी सुवयण सुविभत्त सुसागय सुसामण्ण सुस्सूसमाण सुह श्रुतज्ञानिन् श्रुतज्ञान शुकमुख सुरभवन सुरवर सुरूपता खपिति सुवर्ण सुवर्णता सुवर्णकुमार खपती सुवचन सुविभक्त सुखागत सुश्रामण्य शुश्रूषमाण शुभ सुख सुखता सुहस्तिन् / शुभार्थिन्। सोयावरण* श्रोत्रावरण सोलस* षोडश सोलसम षोडशतम सोलसमंसोलसम, षोडशतमषोडशतम सोहम्म सौधर्म . सोहमाण शोभमान सोहिअ शोभित) शोधित काननु आवरण. सोळ (16). सोळमुं. सात सात उपवास. प्रथम वर्ग, शोमतुं. शोभेल, शोधेल. 281 सारी रीते रहेल. सारो निपुण. सुरभिगंध. शुभ. 228 सांभळेल. 132 श्रुतज्ञानवाळो. 157 श्रुतज्ञान. पोपटर्नु मुख. 243 देव-सुर-तुं भवन. 29 उत्तम देव. 221 सुरूपपणुं. (ते) सुवे छे. सुवर्णकुमार देव.. सुवर्णपणुं.. 'सुवष्ण' जूओ. सूती. सुवचन. जुदुं जुईं. सारं आदरमान. सारं साधुपगुं. सेवा करतो. सारं. सुख. 229 सुखपणुं. पुरुषोमा उत्तम हस्ती मेवा, भव्यो प्रत्ये शुभना अर्थी. 242 श्रीमहावीरना पट्टधर गणधर. ते माटे 14 मा पानामा 'ते संबंधी टिप्पण जूओ. 14 'सुहम्म' शब्द जूओ. 111 ते नामनी देवसभा. 297 सुखपूर्वक. सुखवाळो. 184 A 183 239 240 37 हृष्ट-खुशी.. हाथमा आवेल. हाथर्नु घरेणु. हत्थग हत्थाभरण* 232 273 हष्ट हस्तगत हस्ताभरण . अस्मद्-अहम् हन्तृ-हन्ता / हन्त सुहत्ता हंता* सुहत्थी हंता हणनार. खीकार सूचक अव्यय धरो. हर सुहम्म सुधर्म 179 234 हरिवत्तिय हरिसवस हव्वं हस्सकाल . 199 81 सुधर्मखामिन् सुधर्मा सुखसुख मुखित हीप्रत्यय हर्षवश हव्यम् हखकाल हसति हसन हस्वीकुर्वन्ति जहाति लज्जानिमित्तक. हर्षने आधीन. शीघ्र. टुंको काळ. (4) हसे छे. हसवु. (तेओ) टुंई करे छे. (ते) हीन थाय छे.. 278 हसइ मुहम्मसामि सुहम्मा मुहंसुह मुहिम सुहिय सुहुम सूर सूरिभ सूरीय* सूरोवराग* इसण* 110 110 सूक्ष्म, हस्सीकरेंति हायइ हायति 230 173 241 सूर्य 231 हार Rum हारिद्र (सूरो) सूर्योपराग सूर्येनुं ग्रहण. 304 हालिद्द हिअय हिय हिंस* हृदय तत् श्रेष्टिन् हित हिंसक सेट्टि 248 129 सेणि श्रेणिक सेन सैन्य शेठ. श्रेणिक नामनो राजगृहनो राजा, ते माटे 13 में पाने टिप्पण जूओ. सेना. कल्याण. भविष्यत् काळ. शैलेशीने पामेल. 183 भवन्ति हुताशन श्रेयस् हुयासण हार. हळदर जेवू. हृदय. 234 हित. 238 हिंसा करनार.. निश्चयसूचक अव्यय. 129 तद्दन वांका चुंका आकारवाळु शरीर. (तेओ) थाय छे. 142 अग्नि. 242 हेतु-कारण. 210 हेठळ. 295 हेठळi. 143 168 (ते) थाय छे. थाय. (त) थयो. 13 (तेओ) थाय छे. हेतु एष्यत्काल शैलेशीप्रतिपन्नक सेय* सेयाल* सेलेसिपडिवण्णय सेलेसिपडिवनय सेवमाण सेस सेहावि हेटा* हेटिम अधः अधस्तन सेवमान शेष 274 होइ* सेवतो. बाकीन. प्रतिलेखनादि क्रिया संबंधी भवति भवेत् 14 सेधित 155 144 होज होजा होत्था होति सेंभिय शिक्षण, ग्लेष्मनो व्याधि. धिमक 239 अभूत भवन्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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