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________________ सिद्धोने अईसनो नमस्कार. १२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १. परिचयः १७: तदाधारत्वेनैव च संघस्य तीर्थशब्दाभिधेयस्यात् तथा सिद्धानपि मङ्गलार्थमर्हन्तो नमस्कुर्वन्त्येव "फाउण नमोकारं सिद्धाणमभिग्गहं तु सो गिण्हे” इतिवचनादिति. १७. तथा मंगलने माटे अर्हतो सिद्धोने पण नमस्कार करे छे ज; कारण के “अभिग्रह तो सिद्धोने नमस्कार करीने ते - अर्हत ग्रहण करे" एवं वचन छे. विपातः विपातीचे प्रमाणे विषय वर्णा तो अनेकौनो फलविपाक ते फलविपाक संक्षेपधी ने प्रकारो को छे. ते आप्रमाणेः-दुःखविपाक अने सुखविपाक, तेमां दश दुःखविपाक अने दश सुखविपाक छे. दुःखविपाकर्मा दुःखविपाकवाळा ओना नगरी, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिता, समोसरणो, धर्माचार्यो, धर्मकथा, नगरगमनो, संसारप्रबंध अने दुःखपरंपरा. सुखविपाकमां सुखविपाकवाळाओना नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिताओ, समोवसरणो, धर्माचार्यो, धर्मकथा, आ लोकना अने परलोकना ऋद्धिविशेषो, भोगपरित्यागो, प्रव्रज्याओ, श्रुतपरिग्रहो, तपो, उपधानो पर्यायो, प्रतिमाओ, संलेखनाओ, भक्तप्रत्याख्यानो, पादपोपगमनो, देवलोकगमनो, सुकुलावतारो, बोधिलाभ अने अंतक्रियाओ. अग्यारमा ( विपाकश्रुत ) अंगमां बीश अध्ययन, वीश उद्देशकाल, भीरा समुद्देशनकाल अने संख्याता कास अर्थात् एक कोड, चोरासी लाख अने बीस हजार पदो. दृष्टिवादः -- दृष्टिवादमां सर्व पदार्थोंनी प्ररूपणा छे. ते दृष्टिवाद आ प्रमाणे पांच प्रकारनो छे: - परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, (पूर्व) अनुयोग अने चूलिका. समवायांग सूत्र ( क० आ० ) पृ - १६७ थी १९७. अनु० , पूर्वोविषय भने पदपरिमाणादि अल्वारना उपलब्धसूत्रोमांसची ढोक १. आ अर्थ 'विशेषावश्यकसूत्र' मां ३२१० मी गाथानी टीकामां छे. १. प्र० छाया : - कृत्वा नमस्कारं सिद्धानामभिप्रहं तु स गृह्णीयात्. ३११० गावाटीकायाम् अनु० Jain Education International २. "सिमका काम तु सो निन्हे" विशेषावश्यकसूत्रे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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