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________________ शतक १.-परिचयः भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १६. अर्हतां नमस्करणीयत्वात् , सिद्धवत्. नमस्कुर्वन्ति च श्रुतमर्हन्तः 'नमस्तीर्थाय' इति भणनात्. तीर्थं च श्रुतं संसारसागरोत्तरणाऽसाधारणकारणत्वात् , १६. अने 'तीर्थने नमस्कार हो' एप्रमाणे कहेवाथी अर्हतो श्रुतने नमस्कार करे छे. संसारसागरने तरवामा मुख्य कारण होवाथी श्रुत ए तीर्थ छे इतने पईतीनो नमस्कार. अने तीर्थरूप श्रुतनो आधारभूत होवाथी ज संघ, तीर्थ शब्दवडे वाच्य छे. . त पण तीर्थः मत ए कुलमळीने त्रणसोने सठ अन्यदृष्टिना मतनो परिक्षेप करीने खसमय स्थापन. सूत्रकृतांग सूत्रमां-बीजा अंगमां-बे श्रुतस्कंध छे, - त्रेवीश अध्ययन छे, तेत्रीश उद्देशनकाल, तेत्रीश समुद्देशनकाल अने छत्रीश हजार पदो छे. स्थानांगः-स्थानांग' सूत्रमा निरूपेला विषयो आ प्रमाणे छे:-खसमयनु, परसमयनु अने खपरसमय स्थापन, जीवर्नु, अजीवन, जीवाजीवर्नु, लोकर्नु, अलोकनु अने लोकालोकनुं स्थापन. श्रीजा (स्थानांग) अंगमां पांच श्रुतस्कंध, दश अध्ययन, एकवीश उद्देशनकाल, एकवीश समुद्देशनकाल अने बहोंतर हजार पदो छे. समवायोगः-'समवायांग'मां कहेला विषयो नीचे प्रमाणे छः-खसिद्धांत, परसिद्धांत, खपरसिद्धांत अने एकादिक केटला पदार्थोनुं एकोत्तरिक परिवृद्धि पूर्वक प्रतिपादन अर्थात् प्रथम एकसंख्यक पदार्थोनुं निरूपण पछी द्विसंख्यक पदार्थोन, एम क्रमपूर्वक प्रतिपादन अने द्वादशांग गणिपिटकना पर्यवोनुं प्रतिपादन. चतुर्थ ( समवाय) अंगमा एक अध्ययन, एक श्रुतस्कंध, एक उद्देशनकाल, एक समुद्देशनकाल, अने एकलाख अने चुमालीस हजार पदो छे. व्याख्याप्रज्ञप्तिः (भगवती)-भगवतीसूत्र'मां निरूपेला विषयो नीचे प्रमाणे छे:-खसमय, परसमय, खपरसमय जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक, जुदा जुदा प्रकारना देव, राजा राजर्षि अने अनेक प्रकारे संदिग्ध पुरुषोए पूछेला प्रश्नोना श्रीजिने विस्तारपूर्वक कहेला उत्तरो, जे उत्तरो, द्रव्य, गुण, क्षेत्र काल, पर्यव, प्रदेश अने परिणामना अनुगम, निक्षेपण, नय, प्रमाण अने विविध तथा सुनिपुण उपक्रमपूर्वक यथास्ति भावना प्रतिपादक छे, लोक अने अलोक जेनाथी प्रकाशित छे, जेओ विशाल संसार समुद्रथी तारवामां समर्थ छे, इन्द्रपूजित छे; भव्यलोकोना हृदयना अभिनंदक छे, अंधकाररूप मेलना नाशक छे, सुठु दृष्ट छे, दीपभूत छे, ईहा, मति अने बुद्धिना वर्धक छे, जेनी संख्या बराबर छत्रीश हजार छे, अने जे उत्तरोना उपनिबंधनथी बहुप्रकारना श्रुतार्थों शिष्यहितार्थ गुण हस्तरूप छे. पंचम अंग (भगवतीसूत्र) मां एक श्रुतस्कंध, साधिक सो अध्ययन, दश हजार उद्देशक, दश हजार समुद्देशक, छत्रीश हजारा प्रश्न अने चोराशी हजार पदो छे. झाताधर्मकथाः-'ज्ञाताधर्मकथासूत्र'मां निरूपेला विषयो आ प्रमाणे छे:-उदाहरणभूत पुरुषोना नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापित समवसरणो, धर्माचार्यो, धर्मकथाओ, ऐहलौकिक अने पारलौकिक ऋद्धिविशेषो भोगपरित्यागो प्रव्रज्याओ, श्रुतपरिग्रहो, तपो, उपधानो, पर्यायो, संलेखना, भक्त प्रत्याख्यानो, पादपोपगमनो, देवलोकगमनो, सुकुलमा प्रत्यवतारो, बोधिलाभो अने अंतक्रियाओ. छहा (ज्ञातामकथा) अंगा वे श्रुतस्कंधो अने ओगणत्रीस अध्ययनो छे. ते अध्ययनो बे प्रकारना आप्रमाणे कह्याछे:-चरित्र अने कल्पित. धर्मकथाना दश वर्गों छः तेमा एक एक धर्मकथामां पांचसो पांचसो आख्यायिकाओ छ; एक आख्यायिकामां पांचसो पांचसो उपाख्यायिकाओ छे; एक एक उपाख्यायि. कामां पांचसो पांचसो आख्यायिकोपाख्यायिकाओ छे अने एप्रमाणे ज सपूर्वापर (बधी मळीने) साडात्रण कोड आख्यायिका थाय छे एम कर्जा छे. ओगणत्रीश उद्देशन काल छे, ओगणत्रीश समुद्देशन काल छे अने संख्याता लाख पदो छे अर्थात् पांच लाख अने छोतर हजार पदो छे.. उपासकदशाः--'उपासकदशांग' सूत्रमा कहेला विषयो नीचे प्रमाणे छे:-उपासकोना (श्रावकोना ) नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ. मातापिताओ, समवसरणो, धर्माचार्यो, इहलोकना अने परलोकना ऋद्धिविशेषो तथा श्रावकोना शीलवतो, विरमणो, गुणवतो, प्रत्याख्यानो पौषधोपवासो, श्रुतपरिग्रहो, तपो, उपधानो, प्रतिमाओ, उपसर्गो, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यानो, पादपोपगमनो, देवलोकगमनो, सुकुलमां जन्मो, बोधिलाभ अने अंतक्रिया. सातमा (उपासकदशा ) अंगमां एक श्रुतस्कंध, दश अध्ययन, दश उद्देशनकाल, दश समुद्देशनकाल अने संख्याता लाख पदो अर्थात् अग्यार लाख अने वावन हजार पदो छे. अंतकृशाः-'अंतगडदशांग' सूत्रमा निरूपेला विषयो आ प्रमाणे छ: अंतकृत् (तीर्थकरादि) पुरुषना नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिता, समवसरणो, धर्माचार्यो, धर्मकथाओ, आ लोकनी अने परलोकनी ऋद्धि, भोगपरित्यागो, प्रव्रज्याओ, श्रुतपरिग्रहो, तपो, उपधानो बहुविधप्रतिमाओ, क्षमा, आर्जव, मार्दव, सत्यसहित शीच, सत्तर प्रकारनो संयम,उत्तम ब्रह्मचर्य, अकिंचनता, तप, क्रियाओ, समितिओ, गुप्तिओ, अप्रमादयोग, उत्तम खाध्याय अने ध्यान खरूप, उत्तम संयमने प्राप्त अने जितपरीषह पुरुषोने चार प्रकारना कर्मनो क्षय' यया पछी थएलो केवल ज्ञाननो लाभ, मुनिओए पाळेलो जेटलो पर्याय, पादपोपगत पवित्र मुनिवर जेटला भक्कोने (भोजनोने) वीतावीने ज्या अंतकृत थया ते, अने बीजा मुनिओ, जेओ मुक्तिसुखने पाम्या छे. ते इत्यादि आठमा ( अंतगडदशा) अंगमां एक श्रुतस्कंध, दश अध्ययनो, सात वर्गों, दश उद्देशनकाल, दश समुद्देशनकाल, अने संख्याता लाख पदो अर्थात् वीश लाख अने चार हजार पदो छे. अनुत्तरोपपातिकः-'अनुत्तरोपपातिक' सूत्रमा नीचे प्रमाणे विषयो निरूपेला छे:-अनुत्तरोपपातिकोना नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, मातापिताओ, समवसरणो, धर्माचार्यो, धर्मकथाओ, आ लोकना अने परलोकना ऋद्धि विशेषो, भोगपरित्यागो, प्रव्रज्याओ, श्रुतपरिग्रहो, तपो, उपधानो, पर्याय, प्रतिमा, संलेखना, भक्तपानप्रत्याख्यानो, पादपोपगमनो, सुकुलावतारो, बोधिलाभो अने अंतक्रियाओ. नवमा (अनुत्तरोपपातिक) अंगमां एक श्रुतस्कंध, दश अध्ययन, त्रण वर्ग, दश उद्देशनकाल अने दश समुद्देशनकाल तथा संख्याता लाख अर्थात् छेताळीश लाख अने आठ हजार पदो छे. प्रभव्याकरण:-'प्रश्नव्याकरण'मां दर्शावेल विषय नीचे प्रमाणे छे:-एकसो आठ प्रश्नो, एकसो आठ अप्रश्नो, एकसो आठ प्रश्नाप्रश्नो, विद्याना अतिशयो अने नागकुमारनी अने सुवर्ण कुमारनी साथे थएला दिव्य संवादो. x x x x x दशम (प्रश्नव्याकरण) अंगमा एक श्रुतस्कंध, पीवाळीश उद्देशनकाल, पीस्वाळीश समुद्देशनकाल, अने संख्याता लाख अर्थात् वाणुं लाख अने सोळ हजार पदो छे. 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SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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