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२२६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २.-उद्देशक १. शंका थाय ते सुसंगत छे. तथा घणा काळ सुधी श्वासोच्छ्वासने नहीं लेनारा जीवोने पण कोइ काळे तो श्वासोच्छ्वास लेवो ज पडे छे अने ते आपणने नजरे देखाय छे. पण पृथिवी बगेरेना जीवोनो श्वासोच्छ्वास तो कोइ काळे नजरे जणातो ज नथी माटे पण तेओने-पृथिवी वगेरेना जीबाने-श्वासोच्छ्वास छे के केम ? ए संदेह थवो ए स्थाने ज छे. तो हवे ते शंकाने दूर करवा सारु अने 'पृथिवी वगेरेना जीवोने उच्छ्वास वगेरे होय छे' ए प्रमाणेनी आगम प्रमाणथी प्रसिद्ध थएली वातने दर्शावनाएं आ सूत्र समजवु. उच्छ्वास वगेरेनो अधिकार होवाथी जीवादिक पञ्चीश
पदोमा उच्छ्वासादिकनां अणुओना स्वरूप संबंधी निर्णय करवा सारु प्रश्न करतां कहे छे के:-['किं' णं भंते ! जीवे' इत्यादि.] उच्छ्वास तथा प्रशापना- निःश्वासनां द्रव्यो केवा प्रकारनां होय छे ? ['आहारगमो नेयव्यो ति] प्रेज्ञापनासूत्रमा कहेल अट्ठावीशमा आहारपदनां सूत्रो अहीं कहेवा. ते आ श्वासोच्छ्वासना म. प्रमाणे छ:-"बे वर्णवाळां, त्रण वर्णवाळां अने यावत्-पांच वर्णवाळां.पण. जे अणुओ वर्णथी काळां छे, ते शुं एकगुण काळां छ ? के यावत्
णुओ केवा र अनंतगुण काळां छ? यावत्-ते अनंतगुण काळा पण छे" इत्यादि. ['जीव-एगिदिया' इत्यादिः] जीवो अने एक इंद्रियवाळा जीवो [ 'वाघायव्याघात-निर्व्याघात. निव्वाघायै ति] व्याघातवाळा अने निर्व्याघातवाळा कहेवा. तेमां व्याघात विनाना अने व्याघातवाळा जीवो सूत्रमा ज दर्शाव्या छे. एक इंद्रियवाळा कया कया जीवो के जीवो तो आ प्रमाणे छ:-"हे भगवन् ! पृथिवीकायिको केटली दिशाओमाथी श्वास अने निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे ? हे गौतम ! व्याघात टली दिशाओमा- न होय तो छए दिशामांधी अने जो व्याघात होय तो कदाच त्रण. दिशामांथी श्वास तथा निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे” इत्यादि. ए प्रमाणे थी सास अने
अप्काय वगेरेमां पण समजवं. त्यां जो व्याघात न होय तो छए दिशामांथी अने जो व्याघात होय तो कदाच त्रण दिशामांथी, कदाच चार गुभो मेळवे दिशामांथी तथा कदाच पांच दिशामांथी श्वास अने निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे. कारण के ते पृथिवीकायिक वगेरे लोकने छेडे पण रहे छे माटे
त्र्यादि-त्रण वगेरे-दिशामाथी श्वास अने निःश्वासनां अणुओ मेळववामां अलोकद्वारा तओने व्याघात-अडचण-थाय छे. [ सेसा नियमा छद्दिसिं' ति] बाकीना नैरयिक वगैरे त्रस जीवो छए दिशामांथी श्वास अने निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे. कारण के तेओ त्रसनाडीनी अंतर्भूत होवाथी तेओने छए दिशामाथी श्वास तथा निःश्वासनां अणुओ मळी शके छे.
वायु.
८. प्र०-वाउयाए णं भंते ! वाउयाए चेव आणमंति वा, ८. प्र०-हे भगवन् ! वायुकाय वायुकायोने ज अंदरना 'पाणमंति वा, उससंति वा, नीससंति ?
अने बहारना श्वासमां ले छे ? तथा तेओने ज अंदरना अने बहा.
रना निःश्वासमां के छ ? ८. उ०–हता, गोयमा ! वाउआए णं जाव-नीससंति वा. ८. उ०—हे गौतम ! हा, वायुकाय वायुकायोने ज यावत्
अंदरना अने बहारना निःश्वासमां मूके छे. ९.प्र०-वाउयाए णं भंते ! वाउयाए चेव अणेगसयसह- ९. प्र०-हे भगवन् ! वायुकाय वायुकायमां ज अनेक स्सखुत्तो उद्दाइत्ता, उद्दाइत्ता तत्थेव मुज्जो मुजो पञ्चायाइ ? लाखवार मरीने (बीजे जइने) पाछो त्यां ज (वायुकायमा ज)
आवे-उत्पन्न थाय ?
१. 'किम्' ए सामान्य निर्देश होवाथी उपर प्रमाणे अर्थ थयो छे:-श्रीअभय. २. प्रज्ञापनासूत्रमा आहारपद २८ मुं छे. तेना बे उद्देशक छे. तेमा प्रथम उद्देशकमां ११ बाबतनो समावेश छे अने बीजा उद्देशकमा मुख्य १३ बाबत विवेचन छे. तेनुं संक्षिप्त खरूप आ छे:
सचित्ताऽऽहारट्ठी केवैति किं वा वि सवतो चेव, कतिभाग सब्वे खलु २८ मा आहारपदना प्रथम उद्देशकमां नीचे लखेला विषयो परत्वे परिणीमे चेव बोद्धव्वे. एगिदियसरीरादि लोमौहारे तहेव मणभक्खी, विवेचन छे:-1. जीवो शुं जीववाळी वस्तु खाय छे के निर्जीव वस्तु खाय . एतेसिं तु पदाणं विभावणा होइ कायव्वा..
छ२. जीवोने आहार लेवानो अभिलाष थाय छे के केम ? ३. जीवोने केटले केटले वखते जमवानी जरूर पडे छे ? ४. जे वस्तुओने जीवो जमे छे ते वस्तुओर्नु स्वरूप शुं छे ? ५. जीवो पोताना शरीरना दरेक भागद्वारा आहार लइ शके छ ? ६. जे अणुओने खावा माटे लीधां होय, तेमांनो केटलो भाग खवाय छे, केटलो भाग चखाय छे अने केटलो भाग नाश पामे छे ? ७. खावा माटे लीधेलो बधो खोराक खवाय छे? ८. आहारनुं परिणाम शुं छे-खाधेलो खोराक शरीरमां केवे रूपे परिणमे छे? ९. एक इंद्रियवाळा, बे इंद्रियवाळा, त्रण इंद्रियवाळा, चार इंद्रियवाळा अने पांच इंद्रियवाळा जीवोनां शरीरनां अणुओने जीवो खाय छे १ १०. लोमाहार-कंवाटावती लेवाता आहार-नुं स्वरूप. ११. अने मनोभक्षो देवोना आहारर्नु खरूप 'देवो खावानी इच्छा करे के तुरत ज धराइ जाय' ते केवी रीते छे ! (आ प्रथम उद्देशक पृ-७१८ थी ७३६ सुधी क० आ० मा छे.)
आहार भविय सैन्नी लेस्सा दिही य संजय कैसाए, नार्णी जोगुं—वओगे ए आहार पदना बीजा उद्देशकमां नीचे जणावेल विषयो संबंधी विवेवैदे य सरीर पर्जत्ती.
' चन छे:-१. सामान्य आहार. .२. भव्य जीवोनो आहार. ३. संझी' जीवोनो आहार. ४. लेश्यावाळा जीवोनो आहार. ५. दृष्टिवाळा ( सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि अने मिश्रदृष्टिवाळा ) जीवोनो आहार. ६. संयमी जीवोनो आहार. ७. कषायवाळा जीवोनो आहार. ८. ज्ञानवाळा जीवोनो आहार. ९. योग(शरीरयोगादि)वाळा जीवोनो आहार. १०. उपयोगवाळा जीवोनो आहार. ११. वेद (पुरुषवेद वगेरे ) वाळा जीवोनो आहार. १२. शरीरवाळा जीवोनो आहार. अने १३. पर्याप्तिवाळा जोवोनो आहार. (आ बीजो उद्देशक पृ-७३६ थी ७५० सुधी क• आ• मां छे.)-प्रज्ञापना सूत्र मुद्रित, पृ-७१८ थी ७५०:-अनु०
३. अहीं 'मतुप' प्रत्यय आवीने लोपाइ गयो छे. वळी जो के अहीं आ पाटनो उपर प्रमाणे निर्देश छे. तो पण 'नियांधात' शब्दने पहेलो समः वो. कारण के सूत्रमा तेनो तेम ज निर्देश छ:-श्रीअभय.
१. मूलच्छायाः-वायुकायो भगवन् ! वायुकायान् चैव आनमन्ति वा, प्राणमन्ति वा, उच्चसन्ति वा, निःश्वसन्ति ? हन्त, गौतम! वायुकाया य वत् निःश्वसन्ति वा. वायुकाया भगवन् । वायुकाये चैव अनेकशतसहस्रकृत्वोऽपद्रुत्य अपद्रुत्य तत्रैव भूयो भूयः प्रत्यायाति ?:-अनु. .
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