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विरह.
नारकभव.
संतापीच.
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे -
शतक १. - उद्देशक ५०
धोदप्रचुरत्वात् सर्व एव क्रोधोपयुक्ता भवेयुरित्येको भङ्गः . ' अहवा' इत्यादिना द्वि- त्रि- चतुः संयोगे भङ्गा दर्शिताः तत्र द्विकसंयोगे बहुवचनान्तं क्रोधममुञ्चता षड् भङ्गाः कार्याः, तथाहिः - क्रोधोपयुक्ताश्च, मानोपयुक्तश्च तथा क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्ताश्च. एवं मायया एकत्व - बहुत्वाभ्यां द्वौ, लोमेन च द्वौ, एवमेते द्विकसंयोगे षट्. त्रिकसंयोगे तु द्वादश भवन्ति, तथाहिः - क्रोधे नित्यं बहुवचनम्, मान-माययोरेकवचनमित्येकः, मानैकत्वे मायाबहुत्वे च द्वितीयः, माने च बहुवचनं मायायामेकत्वमिति तृतीयः, मानबहुत्वे मायाबहुत्वे च चतुर्थः पुनः क्रोध-मान-लोभैरित्थमेव चत्वार पुनः क्रोध- माया - लोभैरित्थमेव चत्वारः एवमेते द्वादश. चतुष्कसंयोगे तु अष्टौ, तथाहि: - क्रोधे बहुवचनेन मान-माया-लोभेषु च एकवचनेन एकः, इत्थमेव लोभे बहुवचनेन द्वितीयः - एवमेतावेकवचनान्तमायया जातो. एवं बहुवचनान्तमाययाऽन्यौ द्वौ, एवमेते चत्वारः एकवचनान्तमानेन जाताः एवमेव बहुवचनान्तमानेन चत्वारः - इत्येवमष्टौ एवमेते जघन्यस्थितिषु नारकेषु सप्तविंशतिर्भवन्ति, जघन्यस्थितौ हि बहवो नारका भवन्ति, अतः क्रोधे बहुवचनमेव,
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४. एकेंद्रिय जीवोमां तो बधा कषायमां उपयुक्त जीवो प्रत्येक गतिमां (पृथिवीमां, जळमां, वायुमां, अग्निमां अने वनस्पतिमां ) घणा छे माटे 'अभंगक समज. कयुं छे के :- "ज्यां विरहनो संभव होय त्यां एंशी भांगा करवा अने ज्यां विरहनो संभव न होय त्यां अभंगक के सत्तावीश मां समजवा.” आ गाथामां कहेल विरह क्रोधादि उपयुक्त नैरयिकोनी सत्तानी अपेक्षाए जाणवो. पण नैरयिकोना उत्पादनी अपेक्षाए न जाणवो. कारण ? रत्नप्रभामां चोवीश मुहूर्तनो उत्पाद विरह काळ कयो छे. अने जो अहीं उत्पादनी अपेक्षाए विरह लेवामां आवे तो ज्यां सत्तावीश भांगा कहेवामां आव्या त्यां पण उत्पादनो विरह होवाथी एंशी भांगा थवा जोइए अने सत्तावीश भांगा तो क्यांइ थवा ज न जोइए. अने शास्त्रकारे तो सत्तावीश भांगा समज वानुं पण लख्युं छे, माटे अर्हीीँ उत्पादापेक्ष विरह न समजवो. तेमां [ 'सब्बे वि ताब होज्जा कोहोवउत्त'त्ति ] दरेक नरके पोत पोतानी स्थितिनी अपेक्षा जघन्य स्थितिवाळा नैरयिको निरंतर ज घणा होय छे. अने नारक भव क्रोधना उदयथी अत्यंत व्याप्त छे. माटे 'बधा य नैरयिको क्रोधोपयुक्त छे' एस ऐक भांगो समजवो. [‘अहवा’] इत्यादि सूत्रवडे द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग अने चतुष्कसंयोग संबंधी भांगाओ दर्शाव्या छे. तेमां द्विकसंयोगमां बहुवचनांद क्रोधने साथे राखी छे भांगा करवा. ते भांगा करवानी रीति आ प्रमाणे छेः-बधे ठेकाणे क्रोधने बहुवचनांत राखी मान, माया अने लोभने एकवचनांत तथा बहुवचनांत राखवाथी नीचे दर्शाव्या प्रमाणे छ भांगा द्विक संयोगमां थाय छे अने त्रिकसंयोगमां तो बार भांगा थाय छे. ते भांगा करवानी पद्धति नीचे जणावेल भांगा प्रमाणे समजवी. चतुष्कसंयोगमां तो आठ भांगा थाय छे ते आठ भांगा करवानी रीति आ हे :'क्रोध' मां बहुवचन राखी अने 'मान' 'माया' तथा 'लोभ' मां एकवचन राखी प्रथम भांगो करवो. ए ज प्रमाणे बीजो भांगो करवो, पण 'लोभ 'ने बहुवचनांत करी देवो. एज प्रमाणे बीजा बे भांगा करवा, पण 'माया'ने बहुवचनांत करी देवी. ए ज प्रमाणे बीजा चार भांगा करवा, पण 'मान' ने बहुवचनांत करी देवो. ए प्रमाणे चतुष्क संयोगमां आठ भांगा जाणवा. ए प्रमाणे जघन्य स्थितिवाळा नैरयिकोमा - १-६-१२-८-ए बधा मळीन. सत्तावीश भांगा थाय छे. ए सत्तावीशे भांगामां 'क्रोध' बहुवचनांत ज रहे छे. कारण के जघन्य स्थितिमा रहेनारा नैरयिको घणा होय छे.
५. 'समयाहिआए जहण्णठिईए वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता ?' इत्यादिप्रश्नः इहोत्तरम् - 'कोहोवउत्ते य' इत्यादयोऽशीतिर्भङ्गाः, इह समयाधिकायां यावत् संख्येयसमयाधिकायां जघन्यस्थितौ नारका न भवन्त्यपि भवन्ति चेदेको वाऽनेको वेति ततः क्रोधादिषु एकत्वेन चत्वारो विकल्पाः, बहुत्वेन चान्ये चत्वार एव द्विक संयोगे चतुर्विंशतिः, तथाहिः - क्रोध - मानयोरेकत्व - बहुत्वाभ्यां चत्वारः, एवं क्रोध - माययोः, एवं क्रोध-लोभयोः, एवं मान-माययोः, एवं मान-लोभयोः, एवं माया-लोभयोरिति द्विकयोगे चतुर्विंशतिः. त्रिकसंयोगे द्वात्रिंशत् तथाहि :क्रोध - मान-मायास्वेकत्वेनैकः, एष्वेव मायाबहुत्वेन द्वितीयः, एवमेतौ मानैकत्वेन द्वावेव, अन्यौ तद्वद्दुत्वेन - एवमेते चत्वारः - क्रोधैकत्वेन चत्वार एव. अन्ये क्रोधबहुत्वेन, इत्येवमष्टौ क्रोध - मान-मायात्रिके जाताः तथैवान्येऽष्टौ क्रोध - मान-लोभेषु तथैवान्येऽष्टौ क्रोध - माया -लोभेषु, तथैवाऽन्येऽष्टौ मान-माया-लोभेषु इति द्वात्रिंशत् चतुष्कसंयोगे षोडश, तथाहि :- क्रोधादिषु एकत्वेनैकः, लोभस्य वहुत्वेन द्वितीयः, एवमेतौ मायैकत्वेन, तथान्यौ मायाबहुत्वेन, एवमेते चत्वारो मानैकत्वेन तथान्ये चत्वारः एवं मानबहुत्वेन, एवमेतेऽष्टौ क्रोधैकत्वेन, एवमन्येऽष्टौ
१. (१) क्रोधोपयुक्तो.
२. (१) क्रोधोपयुक्तो. मानोपयुक्त. (२) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो ( ३ ) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्त. (४) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्तो. (५) क्रोधोपयुक्तो लोभोपयुक्त. (६) क्रोधोपयुक्तो लोभोपयुक्तो.
३. (१) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त मायोपयुक्त. (२) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त मायोपयुक्तो (३) क्रोधोपयुक्तो. मानोपयुक्तो. मायोपयुक्त. (४) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो. मायोपयुक्तो. (५) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त. लोभोपयुक्त. (६) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त. लोभोपयुक्तो. (७) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो लोभोपयुक्त. (८) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो. ' लोभोपयुक्तो ( ९ ) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्त. लोभोपयुक्त. (१०) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्त. लोभोपयुक्तो. (११) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्त. (१२) क्रोधोपयुक्तो. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्तो.
४. (१) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त मायोपयुक्त. लोभोपयुक्त. (२) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त मायोपयुक्त. लोभोपयुक्तो (३) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्त. (४) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्त. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्तो. (५) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो. मायोपयुक्त. लोभोपयुक्त. (६) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो. मायोपयुक्त. लोभोपयुक्तो. (७) क्रोधोपयुक्तो मानोपयुक्तो. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्त. (८) क्रोधोपयुक्तो. मानोपयुक्तो. मायोपयुक्तो लोभोपयुक्तो.: - अनु०
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