SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १.-उद्देशक ४. परमायोवधिक. जे अवधि ते अधोऽवधि, जे जीव ते अधोऽवधिवडे व्यवहार करे ते आधोऽवधिक अर्थात् परिमित क्षेत्रविषयक अवधिज्ञानवाळो. ['परमोहोहिओ' त्ति] पूर्वोक्त आधोऽवधिक ज्ञानी करतां जे उत्तम होय ते ‘परमाधोऽवधिक' कहेवाय. कोइ स्थळे ['परमोहिओ'त्ति एवो पाठ छे अने ते पाठ स्पष्ट छे. ते परमावधिक जीवनो विषय आ प्रमाणे छे:-परमावधिवाळो जीव रूपवाळां समस्त द्रव्यो, अलोकमां लोकप्रमाण असंख्यात खंडो तथा असंख्य अवसर्पिणीओ; ए बधुं जाणे छे. ['तिण्णि आलावग'त्ति] त्रण काळना भेदथी त्रण आलापक कहेवा. ['केवली गं' इत्यादि] ए त्रण आलापक केवळज्ञानिने विषे पण कहेवा. ते संबंधे जे विशेष छे ते सूत्रमा ज कसो छे. [ से पूर्ण' इत्यादि] ए सूत्रमा पण त्रणे काळनो निर्देश कहेवो ज जोइए. [ अलमत्यु त्ति वत्तव्वं सियत्ति ] अर्थात् जीव पूर्णज्ञानी छे, अने तेने हवे बीजु कोइ ज्ञान मेळववानुं बाकी रह्यं नथी-जेटलं ज्ञान . ते जीवे मेळव्युं छे तेटलं ज बस-पूरतुं छे एम कहेवाय, कारण के ए ज्ञान सत्य छे. बछमस्त. १. आवो निर्देश प्राकृतना धोरणे कयों छे:-श्रीअभय. बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् , दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपखी। अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योद्, दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिववर मारहा चाप्तमुख्यः॥१॥ Jain Education International www.jainelibrary.org. For Private & Personal Use Only
SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy