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________________ Jain Education International क विणण || १३८ संपइ करें ति सरओ अल्लियमाणो सहसा कासे पयासिज्जइ काऊण अंजलि सा तायंते भणइ भमर - महुर गिरा । ललिय-पणयंग-लट्ठी घण-भर - सिस्सेयण ( ? ) माणस - सर-संपत्ता इह वास जाय- परिओसा । सरयागम घासणयं सुहरिस मिमे हंसा ॥ १३९ हंसेहिं पम्ह-धवलेहिं । जउणा - कच्छट्टहासेहिं ॥ १४० पीयए करेमाणो । नीलेंतो गलिय-वणे असण-वणे कासे य सक्तित्वणे धवलेंतो आगसो सरओ ।। १४१ गहवइ वट्टइ सरओ नट्ठा सत्तूहि ते समं मेहा । संपइ जह पउम-सरं तह सेवड ते चिरं लच्छी ॥१४२ * अम्माए अप्पणो य मालेइ । तो एवं भणमाणी उवगया गहवइस्स उवणेइ । संछण्णं चंगोडं सा सहसा सत्तिवण्णाणं ।। १४३ तत्थुग्घाडिय - निग्गय-पहाबिओ दस दिसाउ पूरेंतो । गयवर-मय-गंधो विव गंधो सो सत्तिवण्णाणं ॥ १४४ तं सत्तिवण्ण-पुण्णं चंगोडं मत्थयम्मि काऊणं । पुष्फेहिं तहा अग्घं अरहंताणं कुणइ ताओ || १४५ माझं च देइ ताओ पेसेइ य पुत्ताणं सकसत्ताण पि पुप्फाई ॥१४६ पेच्छइ य उक्खिवंतो सारय-ससि-निम्मलेहि कुसुमेहिं । करि-दंत-पंडुराओ पिंडीओ सत्तिवण्णाणं ॥ १४७ तत्थ य कंचन गारं (?) अमलिय - जुवइ - पओहर - पमाणं । परमइ स-रयं पयणुं रुपय - कुल ( ? ) -पिंडियं (?) पिंडिं ॥१४८ तो .. .. अ-वरं कणय सच्छहं पिंडि । विम्हय- फारिय-नेत्तो पेच्छइ य चिरं गऊणं ।। १४९ ताओ य तं गहेडं मणम्मि सु-विणिच्छ्यिं करेडं जे । तो निश्चल - सव्वंगो विचितेइ ।।१५० मुहुत्तमेतं * भणइ तत्तो हासविय मुद्दो मज्झ पणामेइ तं कुसुम-पिंडिं । य मुणेहि पुत्तय इमीए वण्णाहिगारमिणं ॥ १५१ तं पुप्फजोणि सत्यम्नि सिक्खिया गंधजुत्ति -सत्थं च । एत्थस्थि तुज्ञ विसउ चि तेण भणिया तुमं पुत्ति ॥ १५२ पगईए पंडुराओ पिंडीउ पुत्ति सत्ति वण्णाणं । केण मणे पीइया पिंडी ॥१५३ अहं विम्हय हेडं किं मण्णे होज्ज सिप्पिएण कया । अह जोणी-सत्थम्मी सिक्खिय-गुण-पायडण - हेउ || १५४ कारण जाएण इमा For Private & Personal Use Only तरंगलीला www.jainelibrary.org
SR No.004633
Book TitleSamkhitta Taramgavai Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages324
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size13 MB
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