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तरंगोली
तत्श्र मया हं संती x x x. । x x x वयंसि मा कस्सइ कहेज्जा ॥११८ तह जइ होही मे सह तेणिह लोए समागमो कह वि । तो नवरि माणुसे हं वयंसि भोए अभिलसिस्सं ॥११९ आसा-पिवास-विस्सासिया अहं सुरय-सोक्ख-लोभिल्ली । सत्त-वरिसाणि सुंदरि तल्लिच्छाए पडिक्खिस्सं ॥१२० तह वि न जइ पेच्छिस्सं वयंसि तं हियय नंदण कह वि । जिण सत्थवाह-पहय तो मोक्ख पहं पवज्जिस्सं ॥१.२१
सोऊण सारसिया य एतं वच्छल्ल भाव मिउ-हियया । मह दुक्ख सोय-सम्मक्खणा य रोवित्तु भणइ इमं ॥१२२ सामिणि मुयसु विसाय इहावि तव देवया-पसारण । चिर-परिचिएण होही तेण सह समागमो भीरू ।।१२३ एवं चाहं तीए बहुहिं पिय-जणुचिएहिं वयणेहिं । संठविया भिसिणि-जलेण(?) अच्छि जलं पुंछयंतीए ॥१२४ तत्तोह [१४७A] सारसिया-सहिया कयली-हराओ घरिणि गया। महिला-जण पारद्धज्जाणिय-वावी-तड-पएसं ॥१२५
अह मज्जणगोवगरण-विरयण-वावडं तहिं अम्मं । दटठूणुवट्ठिया हं दटूठु च ममं मिलाण-मुहं ॥१२६ अम्मा भणइ विसण्णा किं पुत्ताराम-हिंडण-समेण । जाया सि विगय-सोहा भणामि दुक्खे दुया ह पि ॥१२७ गच्छिस्सं नगरीए न समत्था संपयं रमिउमम्मो । जं दुक्खइ मे सीसं जरो य तुरियं तुरियमेइ ॥१२८ सोउं चेमं वयणं स.विसाया वच्छला महं माया । भ.णीय निव्वुया तं पुत्तय जह होहिसि तह होउ ।।१२९ अहमवि नयरिमणिती कहं तुमं असुहियं पमोच्छामि । तो सेज्जा वहण मे जाणं जोत्तावेइ अम्मा ॥१३० सेस-जुबई उ भणइ य तुब्भे मज्जिय-पसाहिय-जिमिया । . एज्जह निय-वेलाए अहयं नयरं नईहामि ॥१३१
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