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तरंगलाला
जेणुस्सुय-कज्ज मे अच्छइ होह य निरुस्सुया तुभे । एवं च मुकुलियत्थं वोत्तुं अम्मा मए सहिया ।।१३२ जाणमारुहइ तत्तो विचित्त-परियण-समन्निया तुरियं । गेहं पत्ता तत्थ य सयणिज्जे हं निसण्या य ।।१३३
ताएण यणे भणियं किमकंडे च्चिय कयं गिहागमणं । पव्व-पयत्तादत्त
जाणिया-भोज्जं ॥१३४ अम्माए तओ भणियं तरंगवइए अंग-मोडो स्थि । न य से सीसं सत्थं तस्थिच्छइ तेण नो रमिउं ॥१३५ जस्स य कए गया हं उज्जाण सर-समीव जायस्स । सो सत्तिवण्ण-रुक्खो कुसम-समिद्धो मए दिट्रो ॥१३६ सेस-महिला-जणस्सयमा हुज्जुज्जाणियाए विग्यो त्ति । आगमण-कारणमिमं [न] मए सब्भावओ कहियं ॥१३७ सोउं चेमं ताओ सु-विज्जमाणेइ तुरियमह सो वि । पुच्छिय सारसियाए कहिया राइ (१) गहियत्थो ॥१३८ नत्थेत्थ कोइ दोसो त्ति वोत्तुस-गिहं गओ तओ हं पि । जेमाविया स-सवहं अम्माए सावसे[स] दिणे ॥१३९ मउजण जेमण-मंडण-पमोय-संभोग-व[इयर-विसेसे । साहिति य महिलाओ मे उज्जाणिय-निउत्ताओ १४० न य मे मणम्मि तोसो गुरु-परियण-चित्त-रक्खणत्थं च ।। पंच वि य इदियत्थे वाहिर-वित्ती य माणेमि ॥१४१
एवं च दुक्खियाए तस्स समागम-कए मए गहियं । आयंविलट्ठ सइय वयमणुजाणाविउं गुरुणा ॥१४२ जाणेइ य तवसेण दोब्बल्लं सयण-परियणा मज्झ । मोत्तूण सारसियं पेच्छामि य(?) सोय-विस्सामं ॥१४३ चित्तवट्टम्मि लिहिय तं चरिय चक्कवाय जाईयं । जं पिय समण्णिया[ए] मे अणुभविय निरवसेसं ॥१४४ संपत्ते. य कमेण कोमुइ-पुण्णिम-दिणम्मि म्मगय (अहयं ?)। अम्मा पिईहिं सहिया कासी चउमासियं किच्चं ॥१४५ धवलहर-मत्तवारण-पिदुमेए(१)वि अवरण्हे । पेच्छंतीए पुरवरिं ठाणट्ठाणम्मि रमणीयं ॥१४६ सच्चविया पय(?) चउपय-दुपय-पडिच्छंदया बहु-जणेहिं । रायपहा य सु-विविहा पसारिया चित्त वट्टम्मि ॥१४७
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