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सरंगलोल
लोगे [इ]य प्पडिस्सुइ सव्वा किर देवया अनिमिस त्ति । अ-व्वाय-मल्ल-दामा
अरयंबर......देवीरा (?) ॥५१ जइ वि विकुरुत्वमाणा करति नाणाविहाणि रूवाणि । तह विकिर तेसि नयणा हवंति निमिसुम्मिसण-हीणा ॥५२ जह से रयोवकिण्णा पाया निमिसंति लोयणाई च । एएण कारणेणं न हु देवी माणुसी एसा ।।५३ अहवा किं मे इय संसएण पुच्छामि गं उवाएणं । हथिम्मि दिस्समाणे कीस पयाई विमग्गामि ।।५४ एवं कयभिप्पाया तीसे रूव-गुण-कोउहल्लेण । विम्हय-पुलइय-सत्ता सा घरिणी भणइ तं अज्जं ॥५५ देह पसीयह अज्जा जइ दे नत्थि नियमस्स उवरोहो । होउ सुहस्स पवित्ति धम्मकहं मे परिकहेह ॥५६ तो भणइ एव भणिया अज्जा नत्थेत्थ कोइ उवरोहो । सव्व जगज्जीव-हियं धम्म उवसाहमाणस्स ॥५७ दो किर पूय-प्पावा दो च्चिय पावंति एत्थ किर पुण्णं । जो सुणइ जो य साहइ अ-विहिंसा-लक्षणं धम्मं ॥५८ निक्खित्त सत्थ-वेरो जं होइ निसामओ मुहुत्तमवि । सोऊण जं च गिण्हइ नियमं कहगस्स सो लाभो ॥५९ धम्म कहगो य इयर अप्पाणं च भव-सागरोधाओ। तारेइ साहमाणो अ-विहिंसा-लक्खणं धम्मं ॥६० एएण कारणेणं धम्मो उवसाहिउँ पसत्थो त्ति । तं सुणह अणण्ण-मणा जं नाहं तं कहेहामि ॥६१ बति य करयल-तालं दैतीओ ताउ एक्कमेकस्स । सव्वाओ विलयाओ तं अज्जं पेच्छण-मणाओ ॥६२ संपाइय-कामम्हे अज्जा-रूवमइयस्स अमयस्स । अणिमिस-दिट्ठी पाड्ढ (?) इमीहिं अच्छीहिं पेच्छामो ॥६३ घरिणीए वि य अभिवंदिऊण खुड्डी(?) तीए सह अज्जा । लद्धम्मि उवट्ठाणम्मि एत(?फा)सुए आसणे तत्थ ॥६४ ताओ वि मुइय मणाउ अज्जं तह वंदिऊण विणएण । कोट्रिम-तले बिलयाउ घरीणीए समं निबिटाओ ॥६५ फड-विसयक्खर-संपाडियाए सज्झाय-करण-लहयाए । भणिइए सा सुभणियाए कण्ण-मण-रसायण-निभाए ॥६६ तो साहिउँ पयत्ता सव्व-जग-सुहवहं जिणाणुमयं । जर-मरण-रोग-जम्मण-संसार विणासणं अज्जा ॥६७ सणाण-दसणाई पंच-महव्वय-मय विणय-मूलं । तव-संजम-पडिपुण्णं अपरिमिय-सुह-प्फलं धम्मं ॥६८
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