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तरंगलाला
एव परमत्थ-निच्छय विहण्णुणा जयण-पडण-जुत्तेण । कत्थइ असज्जमाणेण हवइ मोक्खो सुहं गंतुं ॥१५८७ जं पि य भणह कइवए वासे ता भुंज काम भोगे त्ति । एत्थ वि दीसइ दोसो अनियय-मरणाउरे लोए ॥१५८८ जं नस्थि कोइ लोए मच्चूओ बल-निरंभण समत्थो । तो पुव्वमेव नियमो अकाल-हीणं गहेयव्वो ॥१५८९
एयाणि य अण्णाणि व सस्थाह-सुएण जंपमाणेणं । अम्मा-पियरो सयणो य तत्थ पडिसेहिओ सव्वो ॥१५९० सह-पंसु-कीलणेहिं य निजंतेणोवयार-सुहा (?)। तेण वयंसा वि कया सवे पडिसेहिय-निरासा ॥१५९१ तह वि न इच्छइ हाउं अम्हे तव चरण-निच्छए दो-वि । अवि सो वि सत्थवाहो घरिणी पुत्त-प्पिवासाए ॥१५९२ पिय विप्पओग-दूसह-जम्मण मरण-भय-विदुया एते। छंदेण चरेंतु तवं. तो तत्थ भणिय(?) बहु-जणेहिं ॥१५९३ काम-गुण-परम्मुह-माणसस्स तव-चरण-करण तुरियस्स। जो कुणइ अंतरायं सो मित्त-मुहो अमित्तो त्ति ॥१५९४ तो तं वयण-कलकल जणस्स सोऊण तत्थ सस्थाहो । अणुमण्णेइ अकामो पव्वज्जणं अम्ह (?) ॥१५९५ काऊणं करयल संगम च भाणीय णे दुयग्गे वि। नित्थरह विविह-नियमोववास-गरुय समण-धम्मं ॥१५९६ जम्मण मरण-तरंगं नाणा-जोणि-परिहिंडणावतं । अट्ठविह कम्म-संघाय-कलुस-जल-संचयं संदं ॥१५९७ पिय-विप्पओग-विलावेय-महारवं राग-मयर-परिवरियं । संसार समुदमिणं जह तरह तहा करेह त्ति ॥१५९८ एवं गुण-संवाहो सत्थाहो भाणिऊण पाडेइ । पाएसु बालयं ने (?) नयरिमइगमण कय-मई सो ॥१५९९
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