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________________ १९८ तरंगलाला ता तुज्झ महिलियाओ अत्थि इह अच्छरा-सरिसियाओ। अणुभुत्त-काम-भोगो करिहिसि पच्छा वि तं धम्मं ॥१५७१ रज्ज-समं तारत्तं(?) अम्हे-वि य बे-वि पुत्तयं च इमं । सव्वं च दव्य जायं पुत्तय किं ने परिच्चयसि ।।१५७२ वासाणि कइवयाणि काम-भोगे निरुस्सुओ भुंज । पच्छग्गे परिणय-वओ चरिहिसि उग्गं समण-धम्मं ॥१५७३ अम्मा-पिऊहिं एवं तेहिं कलुणं तहिं भणिओ तो । भणइ चरण-निच्छिय-मइ दिटुंतं सत्थवाह-सुओ ॥१५७४ जह कोसियारि-कीडो नियय-सरीर-कएण अण्णाणी। हिय-कामओ निरंभइ अप्पाणं तंतु-बंधेण ॥१५७५ तह मोह मोहिय-मती(उ) विसय सुह-कामओ दुह-सएहिं । इत्थि-कएण निरुभइ अप्पाणं राग-दोसेहि ॥१५७६ तो राग-दोस दुक्ख-दुओ सया विविह जोणि-भव-गहणं । मिच्छत्त-समुच्छण्णो पडिही संसार-कंतारं ॥१५७७ न-वि तह बहुयं सोक्खं हवति य पुरिसे पियाए लंभम्मि । पावइ जह बहुतरयं दुक्खं थीसु विओगम्मि ॥१५७८ मग्गिज्जतो दुक्खं जणेइ लद्धो य रक्खण-कएणं । सोय कुणइ विणट्ठो तो किर दुक्खावहो अत्थो ।।१५७९ अम्मा-पियरो भाउय-भज्जा पुत्ता य बंधवा सुहिया। एते सिणेह-मइया निगडा नेव्वाण-मग्गस्स ॥१५८० जह सत्थ-समारूढा सहाय-लोभेण दुग्ग-मग्ग-गआ । . अणुपालेति वयंता जणा जणं सत्थ-जाग णं(?) ॥१५८१ नितारा य पुणो कत्थ य ठाणाउ ते पयहिऊणं । अण्णोण्णएहिं वच्चइ पंथेहि जणो जणवयम्मि ॥१५८२ एवमिह-लोय-जत्ता बिइज्जिया हेांति बंधवा नाम । सुह-दुक्ख-मत्त-परिपालणत्थ-जुत्तीकय-सिणेहा ॥१५८३ xxउवि संजोग-विओइओ पुणो बंधवे पमोत्तूण । वच्चंति नियय-कम्मोदएहिं नाणा-गति-विसेसे ॥१५८४ ' वसमक्खिय-निच्चबघेण (?) एगंतरं उवगएण । रागो परिहरियव्वो अवरागो मुत्ति मग्गो त्ति ॥१५८५ लघृण धम्मबुद्धिं गुण-पणियमकालियं गहेयव्वं । जाव न करेइ च बला आउ-परिच्छेदणं कालो ॥१५८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004633
Book TitleSamkhitta Taramgavai Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages324
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size13 MB
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