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અભિષેક: ૯૨
संवत १६४८ वर्ष दिलवा
सोमे म कारक श्रीही रवि जयकारा खर गुरुमात्पु
श्र श्रीविजयसेनको शक्रमोनमः तन महोपाध श्रीविष
मनमः॥ तन मुनिप्रेमविजयनी जात्रा ४१४ कीधी प्रदेश ४ ही धीम ती॥ उदरी निश्व जाना की धीव किनश्री पुन्हर्ष
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