SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साथ अमुक समय तक रहना और उनमें तीव्र या मंद फल देनेकी शक्तिका निर्माण होना ये दो काम कषाय से होते हैं। संक्षेपमें प्रकृति बंध और प्रदेशबंध योग से और स्थितिबंध और अनुभागबंध कषाय से होते हैं। जैन दर्शन में कर्म का परिवर्तन मान्य है। अशुभ एवं शुभ दोनों प्रकार की भावधारा के साथ कर्म की अवस्था में परिवर्तन होता रहता हैं उसी हिसाब से कर्म की दस अवस्थाएँ बताई गई है जिन्हें करण कहते हैं। कर्मकी दूसरी अवस्था उदवर्तना है। स्थिति और अनुभाग बढने को उद्वर्तना कहते हैं। तीसरी अवस्था अपवर्तना है। स्थिति और अनुभाग घटने को अपवर्तना कहते हैं। बंधके बाद ये दोनों क्रियाएँ होती हैं। किसी अशुभ कर्मका बंध करनेके बाद यदि जीव अच्छे कर्म करता है तो उसके पहले बाँधे हुए बुरे कर्मकी स्थिति और फलदानशक्ति घट सकती है। इसी तरह अशुभ कर्मकी जधन्य स्थिति बाँधकर यदि कोई और भी बूरे काम करें तथा उसके परिणाम पहले से भी अधिक क्लुषित हो जाए तो बाँधे हुए बुरे कर्मकी स्थिति और अनुभाग (फलदानशक्ति) बुरे भावोंका असर पाकर बढ सकती हैं। ____बंधने के बाद कर्म तुरंतही अपना फल नहीं देता। कुछ समय बाद उसका फल मिलता है उसका अस्तित्व है पर कर्म सक्रिय नहीं है। कर्म बंधने के बाद कुछ समयतक सत्तानें रहता हैं इस कालको, अबाधाकाल कहते हैं। इसी प्रकार बंधने के बाद फल न देकर मौजुद रहने मात्रको सत्ता कहते है जो चौथी अवस्था है। ____ अगली अवस्था है उदय - आत्मा के साथ एकीभूत कर्म जब शुभ या अशुभ रूप से सक्रिय हो जाता है, फल देनेमें प्रवृत्त हो जाता है उस स्थिति को उदय कहते हैं। उदय दो प्रकार का है - फलोदय और प्रदेशोदय। जो कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाता है उसे फलोदय या कहते हैं। किंतु जब उदयमें आकर भी बिना फल दिये नष्ट हो जाता है (केवल) आत्मप्रदेशो में भोगा जाता है। उसे प्रदेशोदय कहते हैं। इसी तरह कर्मका कभी कभी नियत समयसे पहले विपाक हो जाता है उसे उदारणा कहते है (अर्थात् निश्चित उदयकाल से पहले विशेष पुरुषार्थका જ્ઞાનધારા. (જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy