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________________ निमित्त कारण अवश्य होना चाहिए । आत्मा पर लगी हुई राग-द्वेषकी चिकनाहट और शारीरिक, मानसिक, वाचिक व्यापार ( याने योगरूपी) चंचलता के कारण कर्म-प - परमाणु आत्माके साथ चिपक जाते हैं। ये कर्म-दल अनादि काल से आत्माके साथ चिपके हुए हैं, उनमें से, कई अलग होते हैं तो कई नये चिपक जाते हैं। इस प्रकार यह क्रिया अनादिकालसे चालू है । अभी ये बंधन का हेतु कषाय, राग, द्वेष, मोह आदि भाव भी आत्मामें स्वयं उत्पन्न नहीं होते किंतु कर्म - वर्गणाके विपाक के फल-स्वरूप चेतनाके संपर्क में आने पर ये तज्जनित भाव बनते हैं। जिस आत्मगुण को आवृत्त, विकृत या प्रभावित करते हैं उसके अनुसार उन पुद्गलोंको नाम दिया जाता है। आत्मा के ऐसे तो अनंत गुण हैं किंतु प्रमुख गुण आठ हैं ये आठ प्रकारके कर्म पुद्गलों को भी दो भागों में बाँटा गया है - घाती कर्म और अघाती कर्म । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय थे चार धाती कर्म कहलाते हैं क्योंकि ये चारों आत्माके मुख्य गुणों का घात करते हैं । शेष चार अघाती कर्म कहलाते हैं क्योंकि ये आत्मा के मुख्य गुणों का घात नहीं करते। धाती कर्मोंमें भी दो विभाग है देशघाती और सर्वघाती । जो आत्मगुण के एक देशका घात करता है वह देशघाती है और जो पूरी तरहसे घात करता है वह सर्वघाती है। घातीकर्म तो पापकर्म ही कहे जाते हैं किन्तु अघाती कर्मके भेदोंमें कुछ पुण्यकर्म है कुछ पापकर्म । જ્ઞાનધારા - इसी तरह कर्म के द्रव्यकर्म और भावकर्म ये भी दो भेद हैं। आत्माके राग, द्वेष, मिथ्यात्व, अविरति प्रमाद एवं कषाय और परिणाम भावकर्म कहलाते हैं और उनके फलस्वरूप जो कार्मण वर्गणाके पुद्गल आते हैं और राग-द्वेष के निमित्त से आत्मा के साथ बंधते हैं ये द्रव्यकर्म कहलाते हैं । दूसरे शब्दों में पुद्गल पिंड द्रव्यकर्म और उसकी चेतनाको प्रभावित करनेवली शक्ति भावकर्म है । जीवका परिणमन भावकर्म है और उसके फलस्वरूप आत्माके साथ होनेवाला कर्म- पुद्गलोंका बंध द्रव्यकर्म है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। द्रव्यकर्म एवं भावकर्म का पारंपारिक संबंध को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं 'भावकर्मके होनेसे ये कर्म पुद्गल प्राणीकी क्रिया द्वारा उसके ओर सुखलालजी જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨ Jain Education International - ૨૬૪ For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
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