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साथ, समाज के लिए, हमारे राष्ट्र के लिए तथा वैश्विक रूप से देखा जाए तो समग्र मानवजाति के प्रति जानी-अनजानी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं। जो फल हमें शाता, सुख एवं आनंद देते है, उन्हें हम अच्छा कहते है जो फल हमें पीड़, दुःख तथा शोक का भाव हमारे मन में लाते है उन्हे हम बुरा कहते हैं। हम अच्छे तथा बुरे फलों के मिश्रण का भी अनुभव करते हैं। जो कर्म अथवा फल हमे आनंद की अनुभूति करा सकते हैं वही कर्म तथा फल दूसरों को पीड़ा तथा दुःख का अनुभव करा सकते हैं। ___हम किसी के लिए शुभ चिंतन करेंगे तो उसका शुभ ही होगा। उस व्यक्ति के लिए हमारे मन में सुख, शांति तथा आनंद की अनुभूति का
आविर्भाव होता है। यदि चाहते है कि दूसरे हमें प्रेम दें, तो हमें भी दूसरों को प्रेम करना चाहिए, आप सुखी होना चाहते हों, तो आप को दूसरों को सुख दें। यदि आप दूसरों से सहायता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए। हमारे साधु-संत-मुनि कहा करते हैं - आप जितना स्वयं को चाहते है, उतना ही अपने पडौसी की भी चाहें। दूसरों की भावना को दुःख न पहुँचाए एवं उनकी भावनाओं की कद्र करें, उनकी भावना को ठेस न पहुँचाए। दूसरों का भला चाहना भी ईश्वर की पूजा है एवं वही सच्चा मानवधर्म है।
__हमारे कर्म, हमारी सभी क्रियाएं, आचार, विचार, करनी, भले ही वे कितने छोटे हो, सामान्य हों, वे समग्र विश्व पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव रखते हैं। हम नम्र बने एवं दूसरों का भला सोचे। समग्र विश्व की मानवजाति के लिए पवित्र एवं दिव्य तथा कल्याणकारी भावना एवं विचार रखें। ऐसे सुविचार ही समूचे विश्व के लिए कल्याणकारी तथा आशीर्वाद रूप बन सकती हैं और ऐसे ही हम विश्वशांति के लिए हमारा योगदान कर सकते
हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से कर्मविज्ञान
एक ही मा के दो पुत्रों में भेद क्यों रहता है ? एक ही डॉक्टर एक ही ऑपरेशन थियेटर में दो या अधिक दर्दीओ का ऑपरेशन करता है फिर भी दोनों ही ऑपरेशन के परिणाम भिन्न-भिन्न क्यों रहते है ? रेल के एक ही डिब्बे
જ્ઞાનધારા
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(જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨)
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