SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम संबंध बनाये रखें। दूसरों को सुखी करने की भावना आप के मन में होगी तो आप को सुख मिलेगा। दान कर्म करते रहें। यदि आप झूठ बोलेंगे, अप्रामाणिक कर्म करेंगे, दूसरों को दुख की प्राप्ति होगी। मन, वचन एवं वर्तन से किए गए सभी कार्य, अच्छे रूप में आप करेंगे तो आपको उसकी प्राप्ति भी अच्छे रूप में होगी। आप के मन में किसी के लिए यदि द्वेष तथा इर्ष्या की भावना जन्म लेती है आप ऐसा भी सोचे कि सामनेवाले के मन में आप के लिए द्वेष तथा ईर्ष्या की भावना होगी तो क्या होगा? अच्छे कार्य करते रहे, किसी के लिए भी हमारे मन में बुरे विचार, द्वेष तथा ईर्ष्या की भावना न पनपने दें। ईश्वर के प्रति आस्था बनाए रखें। दूसरों के प्रति अच्छे विचार रखने से हमारे मन में भी प्रकाशित भावना का उदय होता है। कुछ लोग सोचते हैं कि हमारी वर्तमान स्थिति हमारा गत जन्म तथा वर्तमान जन्म के कर्मों का ही परिणाम है। गत जन्मों का फल भी हमें इस जन्म में भुगतना होता है। इस प्रक्रिया में हमारा कोई प्रयास नहीं तो फिर कोई कर्म करना ही क्या? हमारे गत जन्म पर हमारा काबू नहीं हैं, तो भावी जन्म पर हमारा अधिकार एवं काबू कैसे है? वास्तव में वर्तमान जीवन में सत्कार्य एवं अच्छे विचार करने से हमारे भावी जन्म में भी अच्छा फल प्राप्त कर पायेगे। हम में से कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि प्रारब्ध को हम बदल नहीं सकते। हमारे नसीब में जो कुछ भी लिखा है वही होगा। तो फिर महेनत क्यों करना? एसे लोग महेनत नही करते। प्रारब्धवादी बने रहते हैं। आलस्य, एवं प्रमादी बने रहते हैं। उन्हें कोई भी कार्य करने की इच्छा नहीं होती। हम जानते हैं कि हम जो भी कार्य करेंगे तो उसका परिणाम जरुर मिलेगा। तो फिर आत्मविश्वास के साथ एवं स्वयं में श्रद्धा रखकर वर्तमान जीवन में कोई भी अच्छे कार्य महेनत एवं लगन के साथ क्यों न करे? यदि हम प्रारब्धवादी विचारधारा का स्वीकार करके कार्य करेंगे तो कार्य के सिद्धांत को समझ नहीं पाते हैं और हम हमारी सांसारिक एवं आध्यात्मिक जीवन की प्रगति में बाधा का आना स्वाभाविक ही है। कर्म के प्रकार જ્ઞાનધારા (૨૫૫) જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy