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________________ चेष्टा करता है, यही नहीं, कर्म करने की लालसा भी मन में बनी रहती है। कर्म त्याग कदापि संभव नहीं है। कर्म स्वयं ही अच्छा या बुरा नही होता। कर्म की प्रेरक अहंवृत्ति से ही सत्कर्म अथवा दुष्कर्म बनते है। सत्कर्म एवं दुष्कर्म के परिणाम से ही सुख एवं दु:ख का जन्म होता है। सांप्रत समय में कहा जाए तो सुख-दुःख हमारे पूर्वजन्मों का परिणाम है। वर्तमान जन्म के अच्छे या बुरे कार्यो का फल हमें आगामी जन्म में भुगतना होगा । अनुभवों के आधार पर यह सिद्ध हुआ है कि अहंवृत्ति के द्वारा अर्थात् अहंकार जनित कामना सिद्ध करने की इच्छा से प्रेरित कर्म के द्वारा ही सुख-दुख का जन्म होता है। जो कर्म करने से कामना सिद्धि की इच्छा नहीं होती वह कर्म सुख अथवा दु:ख उत्पन्न नहीं करता। कर्म त्याग कदापिसंभव नहीं है, तो फिर कर्मफल से कोई भला मुक्त कैसे रह सकता है? कर्म कदापि सुख अथवा दुःख प्रदान हीं करता। कर्ममुक्ति ही वास्तविक मोक्ष है। कर्म का सिद्धांत प्रकृति का नियम है जैसे सोचोगे, वैसे ही आप बनोगे। यदि आप सही रूप में सोचेंगे और अपने आप में श्रद्धा तथा आत्मविश्वास का बल साथ लेकर चलेंगे और कोई भी कार्य करेंगे तो आप निश्चित रूप सफल होंगे ही। परंतु यदि आप आप के मन में यह मानेगे कि आप डरपोक है एवं आप कोई भी कार्य नहीं कर पायेंगे, तो आप सही अर्थ में किसी भी कार्य में सफलता अर्जित नहीं कर सकते। आप सोचते है कि आप एक महान लेखक अथवा महान वैज्ञानिक बनना चाहते है, तो भविष्य में महान लेखक अथवा महान वैज्ञानिक बनेंगे ही, क्योंकी आप के विचार शुद्ध हैं, आप में आत्मविश्वास है एवं आप के विचारों में बल है। प्रकृति का दूसरा नियम है - जैसा बोओगे, वैसी फसल काटोगे। यही दोनों नियमों का समन्वय होकर कर्म का सिद्धांत बनता है। हम बबूल के पेड़ बोते हैं तो निश्चित रूप से भविष्य में अनेक बबूल के पेड़ ही उगेंगे। जब कि आप आम के पेड़ उगाते हैं तो भविष्य में आपकोही नहीं, आप की आनेवाली पीढियो को भी वे आम के पेड़ से आम के फल की प्राप्ति होगी। हमेशा सत्कर्म करते रहें। सबसे अच्छा व्यवहार करें तथा सभी से स्नेह भावना तथा जानधारा ૨૫૪) (જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
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