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साथ मैत्री सम्बन्ध रखना ; प्राणी को कष्ट से मुक्त करना ऐसी बातों पर सम्यक् प्रकार से चिन्तन करना है। जैनागम प्रश्नव्याकरण में अहिंसा के साठ नाम बताये है, वहाँ पर दया, रक्षा, अभय आदि नामों भी बताया गया है।९।
जैनदर्शन की अहिंसा विधेयात्मक है। उसमें विश्वबन्धुत्व और परोपकार की भावना दिखाई रही है। जैनधर्म की अहिंसा का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है। उसका आदर्श जीओ और जीने दो नहीं किंतु दूसरों के जीने में सहयोगी बनो, दूसरों के जीवन की रक्षा के लिए अपने प्राणों को भी न्यौच्छावर कर दो।।
भगवान महावीरने कहा है कि- छह जीवनिकाय को अपनी आत्मा के समान समझो, 'आयतुले पयासु' हे मानव! जिसको तु मारने की भावना रखता है वह तेरे जैसा ही सुख-दु:ख का अनुभव करनेवाला प्राणी है। वह भी तेरे समान ही एक चेतन है, तु जिसे दुःख देने की इच्छा करता है प्राण लेने की आकांक्षा करता है वह तेरे जैसा ही एक जीव ह। एक प्राणी है ।११ हिंसा के साधन :
अहिंसा जैनधर्म की आधारशीला है । जैनो की अहिंसा का क्षेत्र बडा व्यापक है। उनके अनुसार अहिंसा बाह्य और आन्तरिक दोनो रूप से सम्भव है। बाह्य रूप से किसी जीव को मन, वचन और काय से किसी भी प्रकार की हानि या पीडा नहीं पहुंचाना अहिंसा है। आन्तरिक रूप से राग-द्वेष से निवृत्त होकर सम्यक् भाव में स्थित होना अहिंसा है। बाह्य अहिंसा व्यावहारिक अहिंसा है, आन्तरिक अहिंसा निश्चयात्मक अहिंसा है। ___उमास्वाति ने तत्वार्थसूत्र ७.४ में अहिंसाव्रत के पालन के लिए पाँच भावनाओं का उल्लेख किया है, वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपण समिति और आलोकित पान-भोजन। इन भावनाओं का अर्थ है- हिंसा से बचने के लिए सतर्क रहना और प्रमाद न करना ही वचनगुप्ति है, मन में हिंसा की भावना को उत्पन्न न होने देना मनोगुप्ति है, चलने-फिरने, बैठनेउठने में जीवहिंसा न हो इसका ध्यान रखना ईर्यासमिति है। किसी वस्तु को उठाकर रखने में सावचेती रखना आदान-निक्षेपण समिति है, और भोजन-पान
જ્ઞાનધારા
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(જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨
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