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अथवा साम्राज्यवादी देशों द्वारा किये गये हुमले के कारण आतंकवादी ही तो बनेंगे।
और युद्ध से प्राप्त होनेवाला विजय, जैसे युधिष्ठिर कुरुक्षेत्र के युद्धमें विजय पाने के बाद श्रीकृष्ण से कहते हैं -
जयोऽयम् अजयकारो केशव प्रतिभाति मे।
हे केशव ! यह विजय मुझे पराजयसे भी ज्यादा दुःखदायक लगता है। कलिंगके युद्धकी विभिषिका के कारण अशोक के हृदयने विजय के आनंद के अतिरिक्त दारुण वेदना का ही अनुभव कीया था । हिरोशीमा और नागासाकी की घटना हमारे सामने है। ऐसे विजय हिंसाकी परंपराको जन्म देते हैं । और अमरिका के वर्ल्डट्रेड सेन्टर से जो खून बहाया गया कहाँ तक बहता रहेगा... मालूम नहीं ।
हिंसा के बजाय अहिंसा से भी न्याय प्राप्त हो सकता है। हमें बार बार कहा गया है कि प्रेम-समभाव - सहिष्णुता - सब से ज्यादा शक्तिशाली साधन है जिससे सत्व विजयी सिद्ध होता है । बुद्धने सांत सद्भाव से अंगुलिमालको व किया था, जिसे राजा प्रसेनजित बड़े से बड़े सैन्य की सहाय से भी वश नहीं कर सका था। आज के समय में गांधीजीके सत्याग्रह तथा विनोबाजी और रविशंकर महाराज के दृष्टांत हमारे सामने हैं, जिन्होंने अहिंसा की शक्ति से न्याय पाया था । और 'दूरितो' पर भी विजय पाया था। अलबत्त यह अनिवार्य है कि अहिंसा के शस्त्र से लडनेवाले व्यक्तिको अपने आप संपूर्णरूपसे अहिंसा और प्रेमभाव से ओतप्रोत होना चाहिए।
अहिंसा अध्यात्मकी सर्वोच्च भूमिका है उसीके आधार से व्यक्ति और समष्टिके जीवनमें शांति और संवादिता सुस्थापित हो सकती है । अहिंसा की अवधारणा बीजरूपमें सर्व धर्मोमें पायी जाती है । अहिंसाका मूलाधार जीवन के प्रति समान, समत्वभावना एवं अद्वैतभावना है। समत्वभावसे सहानुभूति तथा अद्वैतभावे आत्मीयता उत्पन्न होती है और इन्हीं से शांतिमय सहअस्तित्व संभव
बनेगा ।
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જ્ઞાનધારા
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જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨
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