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आदि को भी विनष्ट कर देता है । आज जो उपभोक्ता सामग्री की मांग निरंतर बढ़ती जा रही, उससे कोई साधारण व्यक्ति भी अछूता नहीं रह सकता है। जब उस व्यक्ति की मांगों की पूर्ति नहीं होती तो उसके मन में चिन्ता एवं क्षोभ पैदा हो जाता है । इसके कारण सामान्य आमदनी का व्यक्ति कभी कभी अपना मानसिक संतुलन खो देता है। चोरी एवं डाके इत्यादि भी बढ़ जाते हैं । उपभोक्तावाद साधारण व्यक्ति को सम्पन्न व्यक्तियों का अनुकरण करने को बाध्य करता है, जिससे उनका मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक अध: पतन हो जाता है। बढ़ता हुआ उपभोक्तावाद व्यक्ति के जीवन में अशान्ति, तनाव, ईर्ष्या, द्वेष इत्यादि पैदा कर देता है।
प्रदूषण का प्रकोप :
आज अनेक देशों में प्रदूषण का प्रकोप इतना बढ़ गया है कि वहाँ विशुद्ध जल एवं वायु का मिलना भी दुर्लभ हो गया है। रसायनिक खाद के अत्यधिक प्रयोग से हिंसा तो होती है, जमीन की उर्वरा शक्ति का भी क्षरण हो रहा है। कई देशों में नदियों का पानी इतना दूषित हो गया है कि वह पीने के लायक नहीं रहा । कारखानों से निकलने वाले धूएं एवं गंदगी का भी पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी शिखर सम्मेलन में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई कि प्रकृति के संसाधनों का भंडार धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। आज दुनिया के ७-८ समृद्ध देश ८० प्रतिशत संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। इनकी जनसंख्या मात्र २० प्रतिशत है। परिणामस्वरूप विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी, कुपोषण, भूख, बीमारी इत्यादि से ग्रसित है। विकसित एवं अविकसित एवं देशों में असमानता बढ़ती ही जा रही है। अहिंसा का महत्त्व :
भगवान् महावीर ने जो सबसे बड़ा संदेश दिया वह अहिंसा का संदेश है। अहिंसा का अर्थ है जीव मात्र के प्रति प्रेम, सम्मान एवं एकात्मता का भाव । यही भाव आज के विश्व में वास्तविक सुख, शान्ति एवं सौहार्द उत्पन्न कर सकता है। वर्तमान विश्व की समस्याओं के निराकरण में इस सिद्धांत की क्या भूमिका है इस पर विचार किया जाना चाहिए । अहिंसा का सिद्धांत केवल
જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨
જ્ઞાનધારા
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