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________________ समाज के विकास में अहिंसा का यह कम योगदान नहीं है। अहिंसा समाजवाद और साम्यवाद की नींव है। लोग आज देश में समाजवाद-स्थापन की बात करते हैं। अहिंसा के उस महान् उद्घोषक ने आज से हजारों वर्ष पहिले समस्त विश्व में समाजवाद स्थापित कर दिया था। विश्व के समस्त प्राणियों को समान मानना, न केवल मनुष्यों को, इससे भी बड़ा कोई साम्यवाद होगा? अहिंसा महाप्रदीप की किरणों विकरित हो उद्घोष करती हैं, उस महामानव की वाणी गूंजती है- जो तुम अपने लिए चाहते हों, दूसरों के लिए, समूचे विश्व के लिए भी चाहो। और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए भी मत चाहो, मत करो। क्योंकि एक चेतना की ही धारा सबके अन्दर प्रवाहित होती है। अतः सबके साथ समता का व्यवहार करो, यही आचरण सर्वश्रेष्ठ है। इससे तुम्हारा जीवन विकार वासनाओं से मुक्त होता चला जायेगा और निष्पाप हो जायेगा। जैनधर्म की यही उदार दृष्टि अहिंसा को इतना व्यापक बना देती है कि उसे समूचे विश्व के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि उसने संसार से परायेपन को हटाकर अपन जोड़ रखा है। संसार में परायेपन का ही अर्थ है- दु:ख तथा हिंसा होना। और अपनत्व का अर्थ है- सुख एवं अहिंसा होना। क्योंकि जब समूचा विश्व ही व्यक्ति का हो जाता है तो कौन उसे सत्यं, शिवं और सुन्दर नहीं बनाना चाहेगा? अतः प्रत्येक प्रयत्नशील मानव को दुःख के परिहार और सुख के स्वीकार के लिए जैन संस्कृति की मूल देन अहिंसा को अपने जीवन में उतारना होगा। इस संघर्षमय जीवन से संतप्त मानव को अहिंसा की धनी और शीतल छाया में ही शान्ति मिल सकेगी, अन्यत्र नहीं। જ્ઞાનધારા नारा ९२0 ૨ ૨૦ જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨ Malfare SITA-D Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
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