________________ म 16 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् प्रथम दशा अब सूत्रकार प्राणातिपात का विषय वर्णन करते हैं :थेरोवघाइए / / 6 / / स्थविरोपघातिक: / / 6 / / पदार्थान्वयः-थेरावघाइए-स्थविरों का उपघात करने वाला / मूलार्थ-स्थविरों का उपघात करने वाला / टीका-इस सूत्र में निरूपण किया गया है कि स्थविरों का उपघात करने वाला कभी भी समाधि-स्थान की प्राप्ति नहीं कर सकता / जिस व्यक्ति का स्वभाव स्थविर, आचार्य तथा गुरु-आदि मान्य-जनों का अनाचार दोष से, शील दोष से, आत्माभिमानादि द्वारा, तथा असत्-दोषारोपण से उपहनन (हिंसा) करना या उपहनन करने के उपयों का अन्वेषण करना (ढूँढना) हो गया है / वह निःसन्देह असमाधि को प्राप्त करता है, जिससे परिणाम में आत्म-विराधना व संयम-विराधना का होना स्वाभाविक है / यदि स्थविरों की विधि-पूर्वक उपासना की जाए, तभी आत्मा समाधि-स्थान प्राप्त कर सकता है / अतः सिद्ध हआ कि समाधि चाहने वाले जीव को स्थविरोपघातक न होना चाहिए / यदि स्थविर आत्म-शक्ति का प्रयोग करे तो उस उपघातक व्यक्ति को इसी लोक में असमाधि का कारण उत्पन्न हो जाएगा / निष्कर्ष यह निकला कि समाधि-स्थान प्राप्ति के लिए स्थविरों का मान करना आवश्यक है, जिस से समाधि-स्थानों की विषेष रक्षा हो सके / ' भूओवघाइए / / 7 / / भूतोपघातिक: / / 7 / / पदार्थान्वयः-भूओवघाइए-जीवों का उपघात करने वाला / / मूलार्थ-एकेन्द्रियादि जीवों का उपघात करने वाला | 1 उपघातकः, उपघाती / 2 उपघातकः, उपघाती /