________________ शब्दार्थ-कोष 173 का भोजन | तिरिक्ख-जोणिया तिर्यग् योनि–सम्बन्धी तले ताल वृक्ष पशु पक्षी आदि तव-नियम-बंभचेर-वासस्स-तप, नियम | तिरिच्छं-तिरछे, टेढ़े और ब्रह्मचर्य पालन का तिरियं तिर्यग् लोक तव-समायारी-तप कर्म करना, तप का तिव्वासुभ-समायारे=अत्युत्कट अशुभ ___ अनुष्ठान ___समाचार (आचरण) वाला तवसा तप से तीरित्ता पूर्णकर तस्से -(स्से?) त्रस अर्थात् भय के कारण तीसे उसके एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने तुम तू वाले द्विइन्द्रियादि जीव तुम (कासि) तूने यह कार्य किया है तस(स्स?)-पाणघाती त्रस प्राणियों का तुम्हे तुम लोग ____घात करने वाला तुयट्टित्ता शयन करे तस्स उसी के ते तेरे, आपके तस्सेव-उसी को . ते वे तहप्पगारा-इस प्रकार के तेणं उस तहा-रूवे-तथा-रूप, शास्त्र में वर्णन किए। तेणेव-उसी स्थान पर ____ गुणों को धारण करने वाला तेसिं-उनकी तहेव उसी प्रकार (पूर्ववत्) त्ति इति, इस प्रकार ताणि उनको थंडिलंसि स्थण्डिल अर्थात् साधु के शौच तामेव उसी ___ करने की जगह पर तालेह-मारो थद्धे अहंकारी, घमण्डी तिकट्ठ-इस प्रकार (कहकर) थिर-संघयण जिसके शरीर का संगठन या तिक्खुत्तो-तीन बार बनावट दृढ़ हो तितिक्खति-अदैन्यभाव अवलम्बन थिल्लिए यान विशेष, रथ विशेष - करता है थेरेहिं स्थविर तित्थयरे चार तीर्थ स्थापन करने वाले थेरोवघाइए स्थविरों का उपघात करने तित्थाणं-ज्ञानादि तीर्थों के वाला अर्थात् स्थविरों के दोष ढूंढ तिप्पंति रुलाते हैं कर उनका अपमान करने वाला | तिप्पण=रुलाना असमाधि के छठे स्थान का सेवन तिप्पयन्ता=निन्दा करता हुआ करने वाला -