________________ म 16 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् झंपित्ता=अनिष्ट वचन कह कर झाणं धर्म-ध्यान झियायमाणाणं धर्म ध्यानादि शुभ ध्यान करने वाले झुरण झुराना झुरंति झुराते हैं ट्ठिच्चा स्थिति कर ठाणं कायेत्सर्ग करना अर्थात् शरीर को निश्चल बना कर ध्यान करना ठाणा=असमाहि-ठाणा देखो ठाणस्स उस समय ठावइत्ता स्थापन करने वाला ठितिक्खएण=देव लोक में स्थिति क्षय होने के कारण ठितीए स्थिति णं वाक्यालंकार के लिए अव्यय ण निषेधार्थक अव्यय णक्खत्त-ववगय-गह-चंद देखो णणत्थ=अन्यत्र नहीं णत्थि नहीं है णयरस्स-नगर के परिंदे राजा (श्रेणिक) णवाणं नूतन (नये) णस्संति नाश हो जाते हैं णाणावरणं ज्ञानावरणीय, ज्ञान-शक्ति को दबाने वाले कर्म णिगिण्हित्ता=निग्रह करने वाला, दूर करने वाला णिग्गंथ निग्गंथ देखो णिग्गंथी निग्गंथी देखो णिण्हाइ-छिपाने वाला णितिया-वाइ=एकान्ततया पदार्थों की ___स्थिरता स्थापित करने वाला णिदाणं निदान कर्म णिदाणस्स निदान कर्म का णिरया नरक णिवेदह निवेदन करो णिविढे छंद-राग-मती णिविढे देखो णीणेइ=निकालता है णूणं निश्चय से णेयारं नेता को णेरइया नारकी, नरक में रहने वाले जीव णो नहीं, निषेधार्थक अव्यय ण्हाए स्नान किया ण्हाण स्नान, कसाय दंतकट्ट देखो तओ=तीन तं अतः तंजहा जैसे तच्चपि-तीन बार तज्जण-तालणाओ=तिरस्कार करना और मारना तज्जाएणं उसी के वचनों से . तज्जेह तर्जित करो तते, तो इसके अनन्तर तत्थ-वहां . तत्थ-गए वहीं पर बैठा हुआ, अपने ही ___ स्थान पर बैठा हुआ तया उस समय तया-भोयणं त्वक् अर्थात् वृक्ष की छाल