________________ र 14 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् - चउरंसा-चतुष्कोण चउण्डं चार का चउप्पय पशु (चौपाये) चंडं=चण्ड, तीक्ष्ण चंडा-चण्ड, क्रोध-शील चंपा चम्पा नाम की नगरी चक्कवट्टी-चक्रवर्ती चत्तारि-चार चयं शरीर चर(रे)माणे विचरते हुए, विहार करते चरिज्ज=सदाचार में प्रवृत्ति करे चरिमे=चरम, अन्तिम (सायंकाल) चरेज्जा करे चाउलोदणे चावल, भात चाउरंगिणी चतुरंगिणी सेना चारग-बंधणं कारागृह (जेल) में बन्धन चिक्खल्ल कीचड़ चिच्चा छोड़कर चिट्टित्ता खड़ा होने वाला चित्त-वद्धणा-चित्त की मलिनता बढ़ाने वाले / सा. चित्त-ज्ञान में वृद्धि करने वाले चित्त-मंता य=चेतना वाली सजीव चित्त-समाहि-ठाणाइं=चित्त-समाधि के स्थान चियत्त-देहे शरीर के ममत्व भाव छोड़ने वाले चिर-द्वितिएसु=चिर-स्थिति वाले देवलोक चुए च्युत हुए चुय-धम्माओ=धर्म से गिरते हुए को चेइए चैत्य, उद्यान, बगीचा चेएइ उत्पन्न करता है, उत्पन्न करने को विचार करता है चेए(त)माणे करते हुए चेयसा=(दुष्ट) चित्त से चेयसे कलुसाविल देखो चेल-पेला-वस्त्रों की पेटी छंद-राग-मती णिविढे अपने अभिप्रायों ___ को राग अर्थात् विषयों की अभिलाषा __ में स्थापन करने वाला . छण्हं छ: छत्तेण छत्र से छमासिय=भिक्षु की छठी प्रतिमा जिस में छ: दातें अन्न और इतनी ही, पानी की ली ___ जाती हैं छव्विहा छ: प्रकार की छायए छिपाता है / छिंद छेदन करो छिंदित्ता छेदन करने वाला छित्ताछेदन कर छिवाडीए लघु चाबुक से छेदे दीक्षा-छेद जइ यदि जंपि=जो कुछ भी जक्खे-यक्षों को जढं छोड़कर | जणं=(भोले भाले) जन को, मनुष्य को, ___व्यक्ति को 1