SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अज्झयणा पण्णत्ता / तं जहा-बीसं असमाहिठाणा, एगबीसं सबला, तेतीसं आसायणातो, अट्ठविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिठाणा, एगारस उवासगपडिमातो, बारस भिक्खुपडिमातो, पज्जोसवणकप्पो, तीसं मोहणिज्ज-ठाणा, आजाइट्ठाणं | उक्त ग्रन्थ के इस 'अध्ययन-विवरण' से पता चलता है कि जिसमें ज्ञानादि पांच आचारों का वर्णन है, उसी का नाम आचारदशा है | वही वर्णन दशाश्रुत-स्कन्धसूत्र में बिना किसी परिवर्तन के मिलता है / अतः यह मानना पड़ेगा कि 'आचारदशा' इसी का दूसरा नाम है / ग्रन्थकर्ता का निर्णय यद्यपि अर्थागम की अपेक्षा से सब शास्त्र अर्हन् भगवान् के ही भाषित हैं किन्तु सूत्रागम की अपेक्षा वे ही गणधर, स्थविर तथा प्रत्येक बुद्धादि कृत भी होते हैं / इन सब की प्रामाणिकता अंग शास्त्रों के आधार पर ही मानी जाती है / और अंग शास्त्रों में आये। हुए विषयों की विस्तृत व्याख्या उपांग शास्त्रों में ही देखी जाती है / अब हमें यह निर्णय करना है कि इसको सूत्र-रूप में किसने प्रकट किया है / इसके विषय में इस सूत्र की वृत्ति लिखते हुए वृत्तिकार मतिकीर्ति गणि 'अनुयोग' शब्द पर लिखते हैं-"गणधरैरप्यत-एव तस्यैवादौ प्रणयनमकारि, अतस्तत्प्रतिपादकस्य दशाश्रुतस्कन्धस्यानुयोगः समारभ्यते / दशाश्रुतस्यानुयोगोऽथकथनं दशाश्रुतस्कन्धानुयोगः / सूत्रादनु-पश्चादर्थस्य योगोऽनुयोगः, सूत्राध्यायनामतत्पश्चादर्थंकानामिति भावना | अणोर्वा लघीयसः सूत्रस्य महतार्थेन 1 पंचवीस परियाए समणे णिग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खुयायारे असबलायारे अभिण्णायारे असंकिलिट्ठायारे चरित्ते बहुसुए बब्भागमे जहण्णेणं दसाकप्पववहारे कप्पति आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए / (व्यवहार सूत्र उद्देश 3 सू० 5) पंचवीसवास परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पति दसाकप्पववहारनामं अज्झयणे उद्दिसित्तए वा / (व्यवहार सू० उ. सू० 28) छब्बीसं दस कप्पा ववहाराणं उद्देसणकाला प० तं० दसदसाणं छ कप्पस्स दस ववहारस्स / (समवायांग सू० समवाय 16) ठाणंग सू० स्थान 6 पद्यचरित्रप्रश्नव्याकरण सू० पांचवां संवरद्वारउत्तराध्ययन सू० अ० 36 गा० 67 - 40
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy