________________ ' दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 445 है कि अन्य निदानों के समान वह निदान धर्म के मार्ग में प्रतिबन्धक नहीं होता / यही बात उत्तम, मध्यम और जघन्य निदानों के विषय में जाननी चाहिए / कहने का सारांश इतना ही है कि निदान-कर्म का परिणाम संकल्पों के अनुसार ही होता है / फिर सूत्रकार इसी से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं : से णं भवति से जे अणगारा भगवंतो इरिया-समिया भासासमिया जाव बंभयारी तेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई परियागं पाउणइश्त्ता आबाहंसि वा उप्पन्नंसि वा जाव भत्ताई पच्चक्खाएज्जा ? हंता पच्चक्खाएज्जा / बहूई भत्ताई अणसणाई छेदिज्जा? हंता छेदिज्जा | आलोइय पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति / एवं खलु समणाउसो तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पापफलविवागे जं णो संचाएति तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा जाव सव्व-दुक्खाणमंतं करेज्जा / स च भवत्यथ येऽनगारा भगवन्त ईर्यासमिता यावद ब्रह्मचारिणस्तेन (तेषां) विहारेण विहरन् बहूनि वर्षाणि पर्यायं पालयति, पालयित्वा आबाधायामुत्पन्नायाम् (अनुत्पन्नायां वा) यावद् भक्तानि प्रत्याख्यायात् ? हन्त ! प्रत्याख्यायात् / बहूनि भक्तान्यशनानि छिद्यात्, हन्त ! छिद्यात्, छित्त्वालोच्य प्रतिक्रान्तः समाधि प्राप्तः कालमासे कालं कृत्वान्यतरेषु देव-लोकेषु देवतयोपपत्ता भवति / एवं खलु श्रमण! आयुष्मन् ! तस्य निदानस्यायमेतद्रूपः पाप-फल-विपाको यन्न शक्नोति तेनैव भव-ग्रहणेन (सिद्ध्येत्) सिद्धिमेतुम्, यावत्सर्वदुःखानामन्तं (कुर्यात्) कर्तुम् / ___ पदार्थान्वयः-से णं-वह भवति-होता है से-अथ जे-जो अणगारा-अनगार भगवंता-भगवन्त इरियासमियाईर्या-समिति वाले भासासमिया भाषा-समिति वाले