________________ 434 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा, MP. जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया जाव पुमत्ताए पच्चायंति तत्थ णं समणोवासए भविस्सामि / अभिगय-जीवाजीवे जाव उवलद्ध-पुण्ण-पावे फासुयएसणिज्जं असणं पाणं खाइमं साइम पडिलाभेमाणे विहरिस्सामि / से तं साहू | _____ एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! मया धर्मः प्रज्ञप्तस्तच्चैव सर्वं यावत् / स च पराक्रमन् दिव्य-मानुषकेषु काम-भोगेषु निर्वेदं गच्छेत्, मानुषकाः काम-भोगा अधुवा यावद् विप्रहेयाः, दिव्या अपि खलु काम-भोगा अधुवा अनित्या अशाश्वता-श्चलाचलधर्माणः पुनरागमनीयाः पश्चात्पूर्वञ्च न्ववश्यं विप्रहेयाः / सन्त्यस्य तपोनियमादेर्यावदागमिष्यति य इमे भवन्त्युग्रपुत्रा महामातृका यावत्पुंस्त्वेन प्रत्यायान्ति तत्र श्रमणोपासको भविष्यामि (भूयासम्), अभिगतजीवाजीव उपलब्ध-पाप-पुण्यो यावत्प्रासुकैषणीयमशनं पानं खादिम स्वादिमं प्रतिलाभयन् विहरिष्यामि / तदेतत्साधु / . पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे आयुष्मन् ! श्रमण ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से मए-मैंने धम्मे-धर्म पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है तं चेव सव्वं-शेष सब पूर्ववत् ही है जाव-यावत् से य-वह फिर परक्कममाणे-संयम-मार्ग में पराक्रम करते हुए दिव्वमाणुसएहिं-देव और मनुष्य सम्बन्धी कामभोगेहि-काम-भोगों में निव्वेदं गच्छेज्जा-वैराग्य-प्राप्ति करे, माणुसगा-मनुष्यों के कामभोगा-काम-भोग खलु-निश्चय से अधुवा–अनिश्चित हैं जाव-यावत् विप्पजहणिज्जा-त्यागने योग्य हैं दिव्वावि-देव-सम्बन्धी भी कामभोगा-काम-भोग खलु-निश्चय से अधुवा-अनियत हैं अणितिया-अनित्य हैं असासया अशाश्वत अर्थात् विनाशशील हैं चलाचलणधम्मा-चलाचल धर्म वाले अर्थात् अस्थिर हैं पुणरागमणिज्जा-बार-२ आते रहते हैं अतः पच्छा-मृत्यु के बाद च-या पुर-बुढ़ापे से पहले अवस्सं-अवश्य विप्पजहणिज्जा-त्याज्य हैं अतः यदि इमस्स-इस तवनियमस्स-तप और नियम का जाव-यावत् फल-विशेष संति हैं तो आगमेस्साणं आगामी काल में जे-जो इमे-ये उग्गपुत्ता-उग्र-पुत्र महामाउया-महामातृक भवंति–हैं जाव-यावत् उनके किसी एक कुल में पुमत्ताए-पुरुष-रूप से पच्चायंति-उत्पन्न होते हैं तत्थ णं-वहां