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________________ 00 430 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा स नु तत्र नान्येषां देवानामन्यां देवीमभियुज्य परिचारयति, नात्मनैवात्मानं विकृत्य परिचारयति, आत्मीयां देवीमभियुज्य परिचारयति / स नु तत आयुःक्षयेण, भव-क्षयेण स्थिति-क्षयेण-तथैव वक्तव्यम्-नवरं हन्त ! श्रद्दध्यात्, प्रतीयेत, रुचिं दध्यात् / स नु शीलव्रत-गुण-विरमण-प्रत्याख्यानपौषधोपवासानि प्रतिपद्येत नायमर्थः समर्थः / स च दर्शन-श्रावको भवति / पदार्थान्वयः-से-वह णं-वाक्यालङ्कारे तत्थ-वहां अण्णेसिं-दूसरे देवाणं-देवों की अण्णं-दूसरी देविं-देवी को अभिमुंजिय-वश में करके णो परियारेति-मैथुन नहीं करता अप्पणा चेव-अपनी ही आत्मा से अप्पाणं-अपने आप को वेउब्विय-विकृत कर-स्त्री-रूप में प्रकट कर णो परियारेति-मैथुन नहीं करता किन्तु अप्पणिज्जाओ-अपनी ही देवीओ-देवी को अभिमुंजिय-आलिङ्गन कर परियारेति-उसके साथ काम-क्रीड़ा करता है से णं-वह फिर ततो-इसके अनन्तर देव-लोक से आउक्खएणं-आयु क्षय होने के कारण भवक्खएणं-देव-भव के क्षय होने के कारण ठिइक्खएणं-देव-लोक में स्थिति के क्षय होने के कारण तहेव-शेष पूर्ववत् वत्तव्वं-कहना चाहिए णवरं-विशेषता इतनी ही है कि हंता-हां! श्रुत और चारित्र-धर्म में वह सद्दहिज्जा-श्रद्धा करे पत्तिएज्जा-प्रतीति अर्थात् विश्वास करे रोएज्जा-रुचि करे किन्तु वह सीलवय-शील-व्रत गुण-गुण-व्रत वेरमण-विरमण-सावध योग की निवृत्ति-रूप सामायिक व्रत पच्चक्खाण-प्रत्याख्यान अर्थात् पाप के त्याग की प्रतिज्ञा या संकल्प पोसहोववासाइं-पौषध-एक दिन और रात पाप-पूर्ण क्रियाओं को छोड़ कर निराहार रूप से धर्म-स्थान में विधिपूर्वक निवास और उपवास को पडिवज्जेज्जा -ग्रहण करे णो तिणढे समढ़े-यह बात सम्भव नहीं से णं-वह दंसण-सावए-दर्शन-श्रावक भवति-होता है / मूलार्थ-वह वहां अन्य देवों की देवियों के साथ मैथुन-क्रीड़ा नहीं करता, नाहीं अपनी आत्मा से स्त्री और पुरुष के रूप विकुर्वणा कर अपनी काम-तृष्णा को बुझाता है, किन्तु अपनी ही देवी के साथ मैथुन कर सन्तुष्ट रहता है, तदनन्तर वह आयु, भव, और स्थिति के क्षय होने से देव-लोक से उग्रादि कुलों में उत्पन्न होता है इत्यादि सब वर्णन पूर्वोक्त निदान कर्मों के समान ही है, विशेषता केवल इतनी ही है कि वह
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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