________________ - - 410 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा मूलार्थ-संसार में स्त्री होना अत्यन्त कष्ट-प्रद है, क्योंकि स्त्रियों का एक गांव से दूसरे गांव और एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव में आना-जाना अत्यन्त कठिन है | जैसे आम की फांक, मातुलिङ्ग (बिजोरे) की फांक, आम्रातक (बहुबीज फल) की फांक, मांस की फांक, गन्ने की पोरी और शाल्मलीक की फली बहुत से पुरुषों की आस्वादनीय, प्रार्थनीय, स्पृहणीय और अभिलषणीय होती है इसी प्रकार स्त्रियां भी बहुत से पुरुषों की आस्वादनीय और अभिलषणीय होती हैं, अतः स्त्रीत्व निश्चय से कष्ट-रूप.. है और पुरुषत्व साधु है / __टीका-इस सूत्र में निर्ग्रन्थी के निदान-कर्म का कारण बताया गया है / निर्ग्रन्थी पुरुषों को देखकर विचार करती है कि संसार में स्त्री होना बहुत ही बुरा है, क्योंकि उसको एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना बहुत दुष्कर होता है / कारण यह है कि जिस प्रकार एक मांसाहारी पक्षी कहीं मांस के टुकड़े को देखकर उसको प्राप्त करने की इच्छा से उसकी ओर झपटता है और जिस प्रकार आम्र फल, मातुलिङ्ग (बिजोरे) के फल, शाल्मलीक वृक्ष के फल और गन्ने की पोरी आदि स्वादिष्ट फलों को देख लोगों के मुंह में पानी आ जाता है वे उनको प्राप्त करने की उत्कट इच्छा करने लगते हैं इसी प्रकार कई दुष्ट आचरण वाले पुरुष भी स्त्री को देखकर ललचा जाते हैं और उसको बुरी दृष्टि से देखने लगते हैं, जिससे स्त्री को अपने सतीत्व की रक्षा का भय हमेशा बना रहता है, अतः उनको स्वच्छन्दता से इधर-उधर जाना दूभर हो जाता है / इसीलिये स्त्रीत्व कष्ट रूप है और पुरुषत्व साधु है / पुरुष हर एक स्थान पर स्वच्छन्दता और निर्भय होकर जाते हैं / उनको स्त्रियों के समान कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। अब सूत्रकार उक्त विषय से ही सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं: जइ इमस्स तव-नियमस्स जाव अस्थि वयमवि णं आगमेस्साणं इमेयारूवाइं ओरालाई पुरिस-भोगाई भुंजमाणा विहरिस्सामो / से तं साहू | .