________________ . 406 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा पडिसुणेज्जा णो इणढे समढे / अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणताए / सा च भवति महिच्छा जाव दाहिणगामिए णेरइए आगमेस्साणं दुल्लभ-बोहि-यावि भवइ / तं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे पावए फल-विवागे भवति जं नो संचाएति केवलि-पण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए / तस्यास्तथा-प्रकारायाः स्त्रीकायाः (स्त्रियः) तथा-रूपः श्रमणो माहनो वा धर्ममाख्यायात् ? हन्त! आख्यायात्, यावत्सा नु प्रतिश्रृणुयान्नायमर्थः समर्थः / अभव्या सा तस्य धर्मस्य श्रवणाय | सा च भवति महेच्छा यावद्दक्षिण-गामि-नैरयिकागमिष्यति दुर्लभ-बोधिका चापि / तदेवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! तस्य निदानस्यायमेतद्रूपः पापक: फल-विपाको भवति यन्नो शक्नोति केवलि-प्रज्ञप्तं धर्मं प्रतिश्रोतुम् / ___पदार्थान्वयः-तीसे णं-उस तहाप्पगाराए-इस प्रकार की इथिकाए-स्त्री को तहारूवे-तथा-रूप समणे वा-श्रमण अथवा माहणे वा-श्रावक धम्म-धर्म आइक्खेज्जा-कहे हंता-हां आइक्खेज्जा-कहे किन्तु जाव-यावत् सा णं-वह पडिसुणेज्जा-सुने णो इणढे समढ़े-यह सम्भव नहीं क्योंकि सा च-वह स्त्री तस्स-उस धम्मस्स-धर्म को सवणताए-सुनने के लिए अभविया-अयोग्य है सा च-वह महिच्छा-उत्कट इच्छा वाली जाव-यावत् दाहिणगामिए-दक्षिण-दिशा-गामिनी णेरइए-नैरयिका. और आगमेस्साणं-भविष्य में दुल्लभ-बोहियावि-दुर्लभ-बोधिक कर्मों को उपार्जन करने वाली भवति-होती है / समणाउसो-हे आयुष्मान् ! श्रमण! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से तस्स-उस णिदाणस्स-निदान कर्म का इमेयारूवे-यह इस प्रकार का पावए-पाप-रूप फलविवागे-फल-विपाक भवति-होता है जं-जिससे उसके करने वाले में केवलि-पण्णत्तं-केवली भगवान् के कहे हुए धम्म-धर्म को पडिसुणित्तए-सुनने के लिए नो संचाएति-शक्ति नहीं होती / मूलार्थ-क्या इस प्रकार की स्त्री को तथा-रूप श्रमण या श्रावक धर्म सुनावे ? हां, सुनावे / किन्तु यह बात सम्भव नहीं कि वह धर्म को सुने,