________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 3611 तते णं-इसके पश्चात् करयलं-हाथ जोड़कर जाव-यावत् एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा सामी-हे स्वामिन् ! ते-आपका धम्मिए जाणप्पवरं-श्रेष्ठ धार्मिक यान जुत्ते-युक्त है आदिटुं-जैसे श्रीमान् ने आज्ञा की थी वह पूर्ण की गई है भदंत-यान पर चढ़ने वालों का कल्याण हो / इस आशीर्वाद को राजा ने वग्गुहि-वचनों से गहित्ता-ग्रहण किया / ... मूलार्थ-जहां वाहन-शाला थी वहां आकर वाहन-शाला में प्रवेश किया, वाहनों को देखा, उनको प्रमार्जित किया, हाथों से थपथपाया, फिर उनको बाहर निकाला और उनके वस्त्रों को दूर किया / उनको अलंकृत और उत्तम आभूषणों से मण्डित किया / तदनन्तर उनको रथों से जोड़ा और मार्ग में खड़ा कर उन में प्रत्येक के ऊपर एक-एक चाबुक रखा और एक-एक चाबुक धारण करने वाले पुरुष को एक साथ बैठाकर उन (रथों) को रथ्या-मार्ग से बढ़ाता हुआ जहां श्रेणिक राजा था वहीं आया और हाथ जोड़कर विनय-पूर्वक कहने लगा-"हे स्वामिन ! आपकी आज्ञानुसार आपका प्रधान धार्मिक रथ तय्यार खड़ा है / वाहन-युक्त रथों पर चढ़ने वालों का कल्याण हो" | महाराज ने भी इन आशीर्वचनों को ग्रहण किया / - टीका-इस सूत्र का पहले सूत्र में अन्वय है / यान-शालिक रथों को अलङ्कृत कर वाहन-शाला में गया और वृषभादि वाहनों को भली भांति मण्डित कर उसने रथों से जोड़े दिया और उनको महाराज के पास ले जाकर निवेदन किया कि श्रीमान् की आज्ञानुसार सुसज्जित यान उपस्थित हैं | वट्टमग्गं गाहेति' इसके अनेक पाठ-भेद मिलते हैं / जैसे-'वदुम गाहिति' 'वडुम गाहिति' और 'औपपातिकसूत्र' में 'वट्टमग्गं गाहिति' और 'चडुमग्ग गाहेति' | किन्तु वृत्तिकार ने अन्तिम पद को ग्रहण कर इस प्रकार व्याख्या की है-“चडु-मग्ग गाहेति" वर्त्म ग्राहयति-यानानि मार्गे स्थापयतीत्यर्थः / 'प्रदोदयष्टि' चाबुक को कहते हैं / "अंतरासम-पदंसि” / कहीं "अंतरापतोदंसित्ति” ऐसा पाठ है / इत्यादि अन्य शब्दों के विषय में भी जानना चाहिए /