________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / सर्वज्ञ और सर्वदर्शी भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से चलते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम में सुख-पूर्वक विचरते हुए इस राजगृह नगर में पधार गए हैं और नगर के बाहर गुणशैल नामक चैत्य में विराजमान हैं तथा संयम और तप से अपनी आत्मा को अलंकृत करते हुए विचरते हैं। ... टीका-इस सूत्र में भगवान् के गुणशैल चैत्य में पधारने का तथा अध्यक्षों के परस्पर वार्तालाप का वर्णन किया गया है। यह सब मूलार्थ में स्पष्ट ही है। भगवान् का नाम श्री वर्द्धमान स्वामी और गोत्र काश्यप जानना चाहिए। यद्यपि सूत्र में कई शब्द एकार्थक जैसे प्रतीत होते हैं। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं। जैसे-वन्दना का तात्पर्य गुण-कीर्तन करना है और नमस्कार का शिर झुका कर नमस्कार करना। बाकी के शब्दों के अर्थ निम्नलिखित हैं: कांक्षा-प्राप्त वस्तु के न छोड़ने की आशा। स्पृहा-अलब्ध वस्तु के प्राप्त करने की इच्छा। प्रार्थना–अलब्ध की सहायकों से याचना करना। अभिलाषा-प्रिय वस्तु की कामना बनी रहनी। __ संप्राप्त-का अर्थ राजगृह नगर के बाहर गुणशैल नामक चैत्य में विराजमान होने से है। इसी प्रकार अन्य शब्दों के विषय में भी जानना चहिए:____अब सूत्रकार इसी विषय से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं:___ तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सेणियस्स रन्नो एयमटुं निवेदेमो पियं भे भवतु त्ति कटु अण्णमण्णस्स वयणं पडिसुणंति-रत्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छंति-रत्ता रायगिहनगरं मज्झं-मज्झेण जेणेव सेणियस्स रन्नो गिहे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति-रत्ता सेणियं रायं करयलं परिग्गहिय जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति वद्धावित्ता एवं