________________ 350 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा की सेणिए राया-श्रेणिक राजा भंभसारे-भंभसार कंक्खति-इच्छा करता है देवाणुप्पिया-हे देवों के प्रिय लोगो जस्स णं-जिसके दंसणं-दर्शन की सेणिए राया-श्रेणिक राजा पीहेइ-स्पृहा करता है देवाणुप्पिया-हे देवों के प्रिय जनो जस्स णं-जिसके दंसणं-दर्शनों की सेणिए राया-श्रेणिक राजा पत्थेति-प्रार्थना करता है देवाणुप्पिया-हे देवों के प्रियो! जस्स णं-जिसके दंसणं-दर्शन की सेणिए राया-श्रेणिक राजा अभिलसति-अभिलाषा करता है देवाणुप्पिया-हे देवों के प्रियो! जस्स णं-जिसके सेणिए राया-श्रेणिक राजा नाम-गोत्तस्सवि-नाम और गोत्र के भी सवणयाए-सुनने से हट्टतुट्ठ-हर्षित और सन्तुष्ट जाव-यावत् भवति-होता है से णं-वह समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर स्वामी, आदिगरे-धर्म के प्रवर्तक, तित्थयरे-चार तीर्थ स्थापन करने वाले जाव-यावत् सव्वण्णू-सर्वज्ञ और सव्वदंसी-सर्वदर्शी पुव्वाणुपुम्बि-अनुक्रम से चरेमाणे-चलते हुए गामाणुगाम-एक ग्राम से द्वितीय ग्राम में दूतिज्जमाणे-जाते हुए सुहं सुहेणं-सुख-पूर्वक विहरमाणे-विचरते हुए इह आगए-यहां पधार गए हैं इह संपत्ते-इस राजगृह नगर के बाहिर गुणशैल नामक चैत्य में विराजमान हो गए हैं इह समोसढे-इस गुणशैल नामक चैत्य में विद्यमान हैं जाव-यावत् अप्पाणं-अपने आत्मा की भावेमाणे-संयम और तप के द्वारा भावना करते हुए सम्म-अच्छी तरह से विहरति-विचरते हैं णं-पद सर्वत्र वाक्यालंकार के लिए है। मूलार्थ-इसके अनन्तर वे आराम आदि के अध्यक्ष जहां श्रमण भगवान महावीर स्वामी थे वहां आये और उन्होंने भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा कर उनकी वन्दना की और उनको नमस्कार किया। वन्दना / और नमस्कार के अनन्तर उनका नाम और गोत्र पूछा और उसको हृदय में धारण किया। इसके पश्चात् वे सब एकत्रित हो गये और एकान्त स्थान पर जाकर परस्पर इस प्रकार कहने लगे-हे देव-प्रियो! जिनके दर्शन की श्रेणिक राजा भंभसार इच्छा, स्पृहा, प्रार्थना और अभिलाषा करते हैं तथा जिनके नाम और गोत्र सुनकर श्रेणिक राजा हर्षित और सन्तुष्ट हो जाते हैं वह धर्म के प्रवर्तक, चारों तीर्थों के स्थापन करने वाले, "नमोत्थु णं" सूत्र में उक्त सम्पूर्ण गुणों के धारण करने वाले, -