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________________ e - 344 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणेत्ता सेणियस्स रन्नो भंभसारस्स एयमटुं पियं णिवेदह। एवं खलु देवानां प्रियाः ! श्रेणिको राजा भंभसार आज्ञापयति। यदा नु श्रमणो भगवान् महावीर आदिकरस्तीर्थंकरो यावत्संप्राप्ति-कामः पूर्वानुपूर्व्या चरन्, ग्रामानुग्राम द्रुतन्, सुखं सुखेन विहरन्, संयमेन तपसात्मानं भावयन् विहरेत्तदा नु यूयं भगवतो महावीरस्य यथाप्रतिरूपमवग्रहमनुजानीध्वं यथाप्रतिरूपमवग्रहमनुज्ञाय च श्रेणिकस्य राज्ञ एनमर्थं प्रियं निवेदयत। पदार्थान्वयः-एवं-इस प्रकार खलु-अवधारण अर्थ में है देवाणुप्पिया-हे देवताओं के प्रिय लोगो ! सेणिए राया-श्रेणिक राजा भंभसारे-बिम्बसार या भंभसार आणवेइ-आज्ञा करता है जदा णं-जिस समय समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर आदिगरे-धर्म के प्रवर्तक तित्थयरे-चार तीर्थ स्थापन करने वाले जाव-यावत् संपाविओ-कामे-मोक्ष-गमन की कामना करने वाले पुव्वाणु-पुस्विं-अनुक्रम से चरमाणे-चलते हुए गामाणुगामे-एक ग्राम से दूसरे ग्राम में दूतिज्ज़माणे-जाते हुए सुहं सुहेणं-सुख-पूर्वक विहरमाणे-विचरते हुए संजमेण-संयम और तवसा-तप से अप्पाणं-अपनी आत्मा की भावेमाणे-भावना करते हुए विहरिज्जा-यहां विहार करें अर्थात् पधार जायं तया णं-उस समय तुम्हे-तुम लोग भगवओ-भगवान् महावीरस्स-महावीर को यथाप्रतिरूप अवग्रह देकर भभसार-राजा भंभसार से एयं-इस पियं-प्रिय अटुं-समाचार को णिवेदह-निवेदन करो। मूलार्थ-इस प्रकार हे देवों के प्रिय लोगो! श्रेणिक राजा भंभसार आज्ञा करता है कि जब आदिकर, तीर्थ की स्थापना करने वाले तथा मोक्ष-गमन की कामना करने वाले श्री भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से सुख-पूर्वक एक गांव से दूसरे गांव में जाते हुए और अपने आप में अपनी आत्मा की भावना करते हुए इस नगर में पधार जाय तो तुम लोग श्री महावीर स्वामी के लिए साधु के ग्रहण करने योग्य पदार्थों की आज्ञा दो और आज्ञा देकर श्रेणिक राजा भंभसार से इस प्रिय समाचार को निवेदन करो /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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