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________________ नवमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / / 333 अब सूत्रकार वर्णन करते हैं कि उक्त-गुण सम्पन्न साधु को किस-२ वस्तु की प्राप्ति होती है : सुचत्त-दोसे सुद्धप्पा धम्मट्ठी विदितापरे / इहेव लभते कित्तिं पेच्चा य सुगतिं वरं / / सुत्यक्त-दोषः शुद्धात्मा धर्मार्थी विदितापरः / इहैव लभते कीर्तिं प्रेत्ये च सुगतिं वराम् / / पदार्थान्वयः-सुचत्त-दोसे-पूर्णतया दोषों को छोड़कर सुद्धप्पा-शुद्ध आत्मा से वह धम्मट्ठी-धर्मार्थी विदितापरे-मोक्ष के स्वरूप को जानकर इहेव-इसी लोक में कित्तिं-यश लभते-प्राप्त करता है य-और पेच्चा-परलोक में सुगतिं वरं-श्रेष्ठ सुगति को प्राप्त करता है / .. __ मूलार्थ-इस प्रकार दोषों का परित्याग कर वह शुद्धात्मा धर्मार्थी मुक्ति के स्वरूप को जानकर इस लोक में यश प्राप्त करता है और परलोक में श्रेष्ठ सुगति / टीका-इस सूत्र में पूर्वोक्त गुणों का फल वर्णन किया गया है / जिस व्यक्ति ने इस प्रकार अपने दोषों को छोड़ दिया है, जिसने सदाचार से अपनी आत्मा को शुद्ध किया है, जो श्रुत. और चारित्र धर्म के पालन करने की इच्छा से धर्मार्थी है तथा जिसने मोक्ष के स्वरूप को जान लिया है वह इस लोक में कीर्ति प्राप्त करता है / क्योंकि उसको आमभॊषधि (वह शक्ति जिसको प्राप्त कर पुरुष केवल हाथ के स्पर्श से ही सब व्याधियों को भगा दे) आदि लब्धियों की प्राप्ति हो जाती है और वह सारे संसार में मान्य हो जाता है / मृत्यु के अनन्तर वह शुद्धात्मा परलोक में परम सुगति को प्राप्त करता है / सुगतियां चार प्रकार की प्रतिपादन की गई हैं-सिद्ध-सुगति, देव-सुगति, मनुष्य-सुगति और सुकुल-जन्म सुगति / इनमें से वह सब से प्रधान सुगति को प्राप्त करता है / सूत्र में विदितापरः' शब्द आया है उसका अर्थ यह है 'विदितम्-ज्ञातम् अपरं-मोक्षो येन स विदितापरः' अर्थात् जिसने मोक्ष का स्वरूप जान लिया है / ___ अब सूत्रकार प्रस्तुत दशा का उपसंहार करते हुए कहते हैं : -
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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