________________ Pe नवमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / टीका-इस सूत्र में प्रथम मोहनीय कर्म का विषय वर्णन किया गया है / जो व्यक्ति त्रस प्राणियों को जल में डुबो कर जल के आघात से मारता है अर्थात् जल में ही डुबो देता है अथवा जल में डुबा कर पाद-प्रहारादि से मारता है वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / किसी भी त्रस प्राणी की जल के प्रयोग से हिंसा करना एक अत्यन्त निर्दयता-पूर्ण कर्म है / जिस प्रकार एक परिव्राजक जलाशयों में जाकर क्रीड़ा करता है। उसी प्रकार अपने कौतूहल के लिये किसी त्रस प्राणी को खिला-२ कर मारना जघन्य से जघन्य कर्म है / कोई यह शङ्का कर सकता है कि त्रस प्राणियों को जल में डुबो कर मारते हुए जल-जन्तुओं की भी हिंसा होती होगी, क्या उससे महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना नहीं होती ? उसका समाधान इस प्रकार करना चाहिए कि हिंसा-भाव उस समय त्रस प्राणियों की हत्या के ही होते हैं इसीलिए सूत्र में 'तसे पाणे' पाठ दिया गया है / महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना जीव अपने आत्मा द्वारा ही करता है (आत्मना महामोहं प्रकरोति-करणभूतेनात्मनात्मनि कर्म जनयति-उत्पादयति फलोपभोगयोग्यं मोहनीयं कर्मात्मप्रदेशैः सह संश्लेषयतीत्यर्थः) अर्थात् आत्मा त्रस प्राणियों के मारने से स्वयं महा-मोहनीय कर्म का उपार्जन करता है / उपलक्षण से जो कोई और इस प्रकार के कर्म करता है वह भी महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है / अब सूत्रकार द्वितीय मोहनीय कर्म के विषय में कहते हैं :पाणिणा संपिहित्ताणं सोयमावरिय पाणिणं / अंतो नदंतं मारेइ महामोहं पकुव्वइ / / 2 / / पाणिणा संपिधाय स्रोतमावृत्य प्राणिनम् / .. अन्तर्नदन्तं मारयति महामोहं प्रकुरुते / / 2 / / पदार्थान्वयः-पाणिणा-हाथ से संपिहित्ताणं-ढक कर सोयं-स्रोत (मुखादि इन्द्रियों) को आवरिय-अवरुद्ध कर पाणिणं-प्राणी को अंतोनदंतं-मुखादि प्रकाश्य शब्द करने वाली इन्द्रियों के बन्द हो जाने से अव्यक्त (घुर-घुर आदि) शब्द करते हुए पाणिणं-प्राणी को मारेइ-मारता है वह महामोह-महा-मोहनीय कर्म पकुव्वइ-उपार्जित करता है अर्थात् वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है /