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________________ सप्तमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 281 समान दोनों भुजाओं को जानु पर्यन्त लम्बी कर कायोत्सर्ग करना चाहिए / ध्यान रहे कि ध्यान-वृत्ति जिन-मुद्रा के समान ही हो / बाकी सब प्रकार के उपसर्गों को सहन करते हुए प्रस्तुत प्रतिमा की आराधना करनी चाहिए / . . इन प्रतिमाओं में हठ योग का विशेष विधान किया गया है / किन्तु ध्यान का विशेष वर्णन जैन योग-शास्त्र में देखना चाहिए / इस प्रकार क्रियाएं करता हुआ मुनि कौन सी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता ? अपितु वह सब प्रकार की सिद्धियों को अनायास ही प्राप्त कर सकता है, कोई भी सिद्धि उसके लिए असम्भव नहीं है / इस स्थान पर प्रश्न हो सकता है कि आसन और कायोत्सर्ग का तो वर्णन किया गया है किन्तु सूत्रकार ने ध्यान का वर्णन क्यों नहीं किया ? उत्तर में कहा जाता है कि जैसे आदि और अन्त के वर्णन करने से मध्य का वर्णन किया मान लिया जाता है ठीक उसी तरह आसन और कायोत्सर्ग के वर्णन से ध्यान का वर्णन भी किया हुआ जान लेना चाहिए, क्योंकि ध्यान का मुख्य उद्देश्य ध्येय में लीन होना ही होता है / ध्येय में लीन होने की विधि अन्य शास्त्रों से जान लेनी चाहिए / अब सूत्रकार क्रम-प्राप्त बारहवीं प्रतिमा का विषय कहते हैं : एग-राइयं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसट्ट-काए णं जाव अहियासेइ / कप्पइ से अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणिस्स वा ईसिं पड्भार-गएणं काएणं, एग-पोग्गलठितीए दिट्ठीए, अणिमिसि-नयणे अहापणिहितेहिं गएहिं सव्विंदिएहिं गुत्तेहिं दोवि पाए साह? वग्घारिय-पाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, तत्थ से दिव्वं माणुस्सं तिरिक्ख-जोणिया जाव अहियासेइ / से णं तत्थ उच्चार-पासवणं उब्बाहिज्जा नो से कप्पइ उच्चार-पासवणं उगिण्हित्तए / कप्पइ से पुव्व-पडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं परिठवित्तए / अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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