________________ 268 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् सप्तमी दशा अब सूत्रकार शुद्धि के विषय में कहते हैं : मासियं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स नो कप्पति सीओदय-वियडेण वा उसिणोदय-वियडेण वा हत्थाणि वा पादाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए वा णण्णत्थ लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा / मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नः(स्य) नो कल्पते शीतोदकविकटेन वा उष्णोदकविकटेन वा हस्तौ वा पादौ वा दन्तान् वा अक्षिणी वा मुख वोच्छोलयितुं वा प्रधावितुं वा नान्यत्र लेपालेपेन वा भक्त(वद्) आस्येन वा / ___पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स-भिक्षु–प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को सीओदय-वियडेण वा-जीव रहित शीतोदक (ठण्डे पानी ) से उसिणोदय-वियडेण वा-अथवा जीव रहित उष्ण (गरम) जल से हत्थाणि वा-हाथ अथवा पादाणि वा-पैर अथवा दंताणि वा-दांत अथवा अच्छीणि वा-आंखें और महं-मख इन सब अवयवों को ! उच्छोलित्तए-अयत्न (असावधानी) से एक बार धोना वा-अथवा पधोइत्तए-बार-बार धोना नो कप्पति-उचित नहीं है णण्णत्थ-किन्तु इन कारणों से अतिरिक्त स्थल में इस विधि का निषेध है जैसे :-लेवालेवेण वा-यदि शरीर में कोई अशुद्ध, वस्तु लगी हो तो उसको पानी के लेप से दूर करना चाहिए अथवा भत्त-भात आदि भोजन से लिप्त आसेण-मुख को पानी से शुद्ध अवश्य करना चाहिए / इसी प्रकार यदि हाथ आदि अवयव भी भोजन से लिप्त हो गए हों तो उनको भी पानी से ही साफ करना चाहिए / ___ मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न साधु को जीव रहित ठंडे अथवा गरम पानी से हाथ, पैर, दांत, आंखें या मुख एक बार अथवा बार-बार नहीं धोने चाहिएं / किन्तु यदि किसी अशुद्ध वस्तु या अन्नादि से मुख, हाथ आदि अवयव लिप्त हो गये हों तो उनको वह पानी से शुद्ध कर सकता है, अन्यत्र नहीं /