________________ 258 ... दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् सप्तमी दशा मासियं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए पविसित्तए वा / तत्थ णं केइ बाहाए गाहाए आगसेज्जा नो से कप्पति तं अवलंबित्तए पलंबित्तए वा, कप्पति अहारियं रियत्तए / मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नस्य, कश्चित्, उपाश्रयमग्निकायेन धमेत्, नैव स कल्पते तम् (अग्नि) प्रतीत्य निष्क्रान्तुं प्रवेष्टुं वा / तत्र नु कश्चिद् बाबादौ गृहीत्वाकर्षेत् नैव स कल्पते तमवलम्बयितुं प्रलम्बयितुं वा / कल्पते स यथेर्यमर्तुम् / पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं–भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न साधु के उवस्सयं-उपाश्रय को केइ-कोई व्यक्ति अगणिकाएणं-अग्निकाय से झामेज्जा-जलाए तो से-उस साधु को तं-उस अग्नि की पडुच्च-अपेक्षा से उस उपाश्रय से निक्खमित्तए-बाहर निकलना वा-अथवा बाहर से पविसित्तए-भीतर प्रवेश करना णो कप्पइ-योग्य नहीं / किन्तु तत्थ-वहां केइ-कोई बाहाए-भुजाएं गाहाए-पकड़ कर आगसेज्जा-उसको बाहर खींचे तो से-उस (मुनि) को तं-उस व्यक्ति का अवलंबित्तए-अवलम्बन करना वा-अथवा पलंबित्तए-प्रलम्बन करना णो कप्पति-योग्य नहीं, किन्तु से-उसको अहारियं-ईर्या-समिति के अनुसार रियत्तए गमन करना कप्पति-योग्य है / मूलार्थ-यदि कोई व्यक्ति अग्निकाय से प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार के उपाश्रय को जलाए तो मुनि को अग्नि के कारण उपाश्रय से बाहर नहीं निकलना चाहिए और यदि बाहर हो तो भीतर नहीं आना चाहिए / किन्तु यदि कोई उसकी भुजा पकड़ कर उसे खींचे तो खींचने वाले का अवलम्बन और प्रलम्बन करना योग्य नहीं, अपितु ईर्या-समिति के अनुसार गमन करना ही योग्य है / टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि यदि उपाश्रय में आग लग जाय तो प्रतिमा-प्रतिपन्न मुनि को क्या करना चाहिए / जिस स्थान पर साधु ठहरा हुआ है यदि