________________ - सप्तमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 2534 'याचना' शब्द से साधु के ग्रहण करने के योग्य जितने भी पदार्थ हैं उन सब का बोध करना चाहिए / इसी प्रकार 'पृच्छना' का जिस विषय में भी सन्देह हो उसके विषय में प्रश्न करने से तात्पर्य है / इसी प्रकार 'स्थान के लिए आज्ञा मांगना' और दूसरों के 'प्रश्नों का उत्तर देना' इन दोनों के विषय में भी जानना चाहिए / सारांश यह निकला कि इन चार विषयों के अतिरिक्त मुनि को नहीं बोलना चाहिए / अब सूत्रकार उपाश्रय. के विषय में कहते हैं : मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए / तं जहा-अहे आराम-गिहंसि वा, अहे वियड-गिर्हसि वा, अहे रुक्ख-मूल-गिहंसि वा / - मासिकी नु भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नः (स्य) कल्पते त्रीनुपाश्रयान् प्रतिलेखयितुम् / तद्यथा-अध आराम-गृहे वा, अधो विवृत-गृहे वा, अधो वृक्ष-मूल-गृहे वा / . पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न . अनगार को तओ-तीन उवस्सया-उपाश्रय पडिलेहित्तए-प्रतिलेखन करने के लिए कप्पति-योग्य हैं / तं जहा-जैसे अहे आराम-गिहंसि-उद्यान स्थित घर में वा–अथवा अहे वियड-गिहंसि-खुले घर में वा-अथवा अहे रुक्ख-मूल-गिहंसि-वृक्ष के मूल में अथवा वृक्षों की जड़ों से बने हुए घर में / णं-वाक्यालङ्कार के लिए है / __ मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रय प्रतिलेखन करने चाहिएं / जैसे-उद्यान-गृह, चारों ओर से अनाच्छादित-गृह तथा वृक्ष-मूलस्थ या वृक्ष-मूल-निर्मित गृह / टीका-इस सूत्र में उपाश्रय के विषय में प्रतिपादन किया गया है। मासिकी-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन तरह के उपाश्रयों की प्रतिलेखना करनी चाहिए / जैसे-जब प्रतिमा पालन करते हुए भिक्षु कहीं निवास की इच्छा करे तो उसको उपाश्रय के लिए उद्यान-गृह, चारों ओर से अनाच्छदित और ऊपर से छादित गृह या वृक्ष-मूलस्थ शुद्ध गृह ढूँढ़ कर वहीं रहना चाहिए /