________________ - - 00 252 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् सप्तमी दशा मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नः(स्य) कल्पते चतस्रो भाषा भाषितुम् / तद्यथा-याचनी, पृच्छनी, अनुज्ञापनी, पृष्ठस्य व्याकरणी / __पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अनगार को चत्तारि-चार भासाओ-भाषाएं भासित्तए-बोलने के लिए कप्पति-योग्य हैं / तं जहा-जैसे- जायणी-आहारादि की याचना करने की भाषा पुच्छणी-मार्गादि या अन्य प्रश्नादि पूछने की भाषा अणुण्णवणी-स्थानादि के लिए आज्ञा लेने की भाषा पुट्ठस्स वागरणी-प्रश्नों की उत्तर रूप भाषा | मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को चार भाषाएं भाषण करनी कल्पित की हैं। जैसे-आहारादि के लिए याचना करने की, मार्गादि के विषय में पूछने की, स्थानादि के लिए आज्ञा लेने की और प्रश्नों के उत्तर देने की / _____टीका-इस सूत्र में प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार की भाषाओं के विषय में प्रतिपादन किया गया है / यों तो प्रतिमा-धारी को अपना अधिकांश समय मौन-वृत्ति में ही व्यतीत करना पड़ता है / किन्तु कुछ काम ऐसे हैं जिनके लिए उसको मौन छोड़कर बोलना पड़ता है / सूत्रकार उसके लिए नियम कहते हैं कि जब कोई प्रतिमाधारी बोले तो उसके लिए भाषाएं कल्पित की गई हैं / जैसे-जब भिक्षु गोचरी के लिए जाता है और आहारादि की याचना करता है उस समय उसको 'याचना-रूप' भाषा को प्रयोग करना पढ़ता है, जब किसी विषय में संशय उत्पन्न हो जाय उस समय अर्थ निर्णय के लिए वह .'प्रश्न-रूप' भाषा बोलता है, यदि वह कहीं निवास करना चाहे तो वह स्थान के लिए 'आज्ञा-ग्रहण-रूप' भाषा का प्रयोग करता है, यदि कोई उससे प्रश्न करे 'तुम कौन हो ?' इत्यादि तो वह ‘उत्तर-रूप' भाषा कहता है / इन चार कारणों के अतिरिक्त उसको किसी भी विषय में नहीं बोलना चाहिए / क्योंकि ध्यान का मुख्य साधन मौनावलम्बन ही है / मौन-वृत्ति से मुनि निर्विघ्नतया ध्यानावस्थित हो सकता है / अतः जहां बोलना अत्यावश्यक हो वहीं उसको बोलना चाहिए / वही चार आवश्यक स्थान सूत्रकार ने वर्णन कर दिए हैं / -