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________________ are सप्तमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 247 मार्जारादि जीवों के आक्रमण करने का भय है / इसी प्रकार यदि कोई स्त्री बच्चे को दूध पिलाती हो और उससे स्तन छुड़ाकर भिक्षा देने लगे तो भिक्षु को ग्रहण नहीं करनी चाहिए / क्योंकि इससे अन्तराय दोष लगता है / ये सब अभिग्रह आत्म कल्याण के लिए ही किये जाते हैं / अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यदि वन आदि स्थान में एक पुरुष ने अपने ही लिए भोजन तय्यार किया हो या नगर आदि में कोई ऐसी महाशाला हो जिससे देहली ही न हो तो वहां भिक्षु को क्या करना चाहिए ? इसके उत्तर में कहा जाता है कि यदि देहली न भी हो और देने वाले की भाव-भगी इस प्रकार हो जैसे उसने एक पैर देहली के भीतर और एक उसके बाहर किया हो तो उससे भिक्षा ले सकता है / इसी प्रकार पर्वत आदि के विषय में भी जानना चाहिए / अब सूत्रकार कालाभिग्रह का वर्णन करते हुए कहते हैं :___ मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स तओ गोयर-काला पण्णत्ता / तं जहा-आदि मज्झे चरिमे | आदि चरेज्जा, नो मज्झे चरेज्जा, णो चरिमे चरेज्जा ||1|| मज्झे चरेज्जा, नो आदि चरेज्जा, नो चरिमे चरेज्जा / / 2 / / चरिमे चरेज्जा, नो आदि चरेज्जा, नो मज्झिमे चरेज्जा / / 3 / / . मासिकी नु भिक्षु-प्रतिभा प्रतिपन्नस्यानगारस्य त्रयो गोचर-कालाः प्रज्ञप्ताः / तद्यथा-आदिमध्यश्चरमः / आदौ चरेत्, न मध्ये चरेत्, न चरमे चरेत् / मध्ये चरेत्, नादौ चरेत्, न चरमे चरेत् / चरमे चरेत्, नादौ चरेत्, न मध्ये चरेत् / _ पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अणगारस्स-अनगार के तओ-तीन गोयर-काला-गोचर-काल पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं / तं जहा-जैसे आदि-आदि मज्झे-मध्य और चरिमे-चरम / इनमें से यदि आदि चरेज्जा-आदि में गमन करे नो मज्झे चरेज्जा-तो मध्य में न जावे नो चरिमे चरेज्जा-तो चरम भाग में न जावे जइ मज्झे चरेज्जा-यदि मध्य में जाए तो नो आदि चरेज्जा-तो
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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