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________________ 216 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा - वह एक रात्रि की उपासक-प्रतिमा का पालन करता है / वह स्नान नहीं करता, रात्रि में भोजन नहीं करता, धोती की लांग नहीं बांधता, दिन में और रात्रि में ब्रह्मचार्य व्रत धारण करता है, किन्तु वह बुद्धि-पूर्वक सचित्त आहार का परित्याग नहीं करता / इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ कम से कम एक दिन दो दिन तीन दिन और अधिक से अधिक छः मास तक विचरता है / यही छठी उपासक-प्रतिमा है। टीका-इस सूत्र में छठी प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है / जो व्यक्ति इस प्रतिमा में प्रविष्ट होता है वह सर्व-धर्म-विषयक रुचि से लेकर अन्य पांचवी प्रतिमा तक के सब नियमो का पालन करता है / वह विशेषतया एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का आराधन करता है और स्नान नहीं करता, रात्रि में भोजन नहीं करता, धोती को लांग नहीं देता, रात्रि और दिन में ब्रह्यचार्य से रहता है / वह इन नियमों का निरतिचार से पालन करता है / इनके साथ-साथ वह काम-जनक विकथाओं का भी परित्याग कर देता है / किन्तु वह सचित्त आहार का परित्याग नहीं करता / कहने का तात्पर्य यह है कि औषधादि सेवन के समय या अन्य किसी कारण से यदि वह सचित्त आहार सेवन कर ले तो उसके लिए इसका निषेध नहीं, क्योंकि उसके लिए सचित्त आहार का सेवन प्रत्याख्यान नहीं है। ___इस प्रतिमा की समय-अवधि कम से कम एक, दो या तीन दिन और अधिक से अधिक छ: मास है / कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिज्ञा ग्रहण के अनन्तर यदि किसी की छ: मास से पूर्व ही मृत्यु हो जाय या वह दीक्षा ग्रहण कर ले तो उसकी अवधि है / यदि कोई व्यक्ति आजीवन इन नियमों का सेवन करे तो उसका निषेध नहीं / वह स्वेच्छानुसार यथाशक्ति इनका पालन कर सकता है / हाँ, अभिग्रह-परिमाण में विशेष अवश्य होता है और वह होना भी चाहिए / उपासक का मार्ग प्रायः योग मार्ग में ही व्यतीत होता है: अब सूत्रकार सातवीं प्रतिमा का विषय वर्णन करते हैं: अहावरा सत्तमा उवासग-पडिमा | सव्व-धम्म-रुई यावि भवति / जाव राओवरायं वा बंभयारी सचित्ताहारे से परिण्णाए
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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